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________________ 11.21.6 महाकद सिंह विरद्दउ पण्णचरिउ [223 केस-कलाउ घरिवि अच्छोडहिं चलण-चलण करई-करु मोडहिं। गासा-बस-सवण धरि तोडहि | सिर-सिरेण अप्फाले वि फोडहिं । पहणहिं णिठुर मुट्ठि पहारहिं वियलहि देहि रत्त-जलधारहि। एव खलंत-लुडत-पड़तवि रोवंता चवंत-णासंतवि। णीससंति तणु वा दुक्खाउन शिर समग्म- दुनिन । दिया। घत्ता- इय पेंक्खिवि विप्पहँ बिलसियउ हँसेवि सच्च आहासई। गुणवंतु महंतु संतु वडुअ तुज्झु समाणु ण दीतइ।। 208 ।। (21) गाहा-... दिण्णासणे वइट्ठो महुरालावेण भत्तिवंतेण । वर रयणेहिमि खइयं कणयमयं दोइयं धालं ।। छ।। कर-पक्खालणु पेवित्रि तुरंतइँ दिण्णई सालगाइँ रसवंत। धवलु सुअंधु सुकोमलु सरलउ परसिउ कूलु अमलु अइ विरलउ। दालिवि णव-दीणार समाणिवि सञ्ज सुगंधु तुप्पु लहु आणिवि। सूवारचि वि सवेउ सु समप्पड़ आहारेइ वडुउ णउ तिप्पइ। पकड़कर खींचने लगे। एक-दूसरे को लातें मारने लगे और एक-दूसरे के हाथ मरोड़ने लगे। नासावंश को पकड़कर तोड़ने लगे, कान पकड़कर ऐंठने लगे। सिर को सिर से मारकर फोड़ने लगे। परस्पर में निष्ठुर मुष्टि-प्रहारों से मारने लगे। देह से रक्त रूप जलधारा गिरने लगी। इस प्रकार कोई रिपटे, कोई लुढ़के, कोई गिर पड़े, कोई रोते, कोई बड़-बड़ बोलते कोई लिप-छिप कर भागने लगे। शरीर के व्रणों के दुःख से पीड़ित होकर श्वास छोड़ने लगे। सभी द्विजवर भग्न-हृदय एवं उदास मन वाले हो गये। धत्ता- इस प्रकार विनों की चेष्टा देखकर देवी सत्यभामा हँस कर बोली—"हे बटुक, तुम जैसा गुणवान् महान् सन्त विप्र अन्य कोई नहीं दिखायी देता।" ।। 208 ।। (21) कपिलांग वटुक एक वर्ष में खाने योग्य सामग्री निमिष मात्र में ही खाकर __ सबको आश्चर्यचकित कर देता है गाथा- इस प्रकार मधुरालाप करके भक्तिपूर्वक दिये हुए आसन पर वह कपिलांग बटुक बैठ गया। पुन: वह सत्यभामा उत्तम रत्नों से खचित-जड़ित कनकमय थाल उस (वटुक) के सम्मुख ले आयी।। छ ।। तुरन्त ही हाथों का प्रक्षालन करा के उसने नमकीन रसोई परोसी। धवल, सुगन्धित, सुकोमल, सरल, अमल और अतिविरल (फैला हुआ) कूलु (भात) परोसर । तत्काल ही ताजे सुगन्धित्त घी से छौंकी हुई नव-दीनारों के समान मीठी दाल लाकर तथा शाक-तरकारी आदि वेगपूर्वक देने लगी। इस प्रकार वह सत्यभामा आहार करा रही थी तो भी वह बटुक तृप्त नहीं हो रहा था. यह देख कर लोगों के मन विस्मय से भर उठे। उसी समय
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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