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________________ IL.19.51 महाकद मह निरहन पजतुग्णा 1221 अमुणिय गोल बाइ-कुल 5 अमगाराणे: वोह । सुद्ध मुख कुकलहु वि कि किज्जइ अवर सहि पि गमि लए सिलाइ। को वि मुव विणिविड़ कर जामहि माया-बहुउ समुदि। तामह। तहि उपविटाउ उरि महंत दियवराय मणे रोसु वह हैं। महुमह-महाएवीहि समाणउँ चहि देवि लहुवारि अयाणउँ । कुलसीले वत्तु कलियारउ बुहयणाहँ गर अविणय-गारज । चत्त'-.. मायारत पहु एह णिहणसहु णिर दु: मणु। अह ण दोसु फुडु अन्थि णि६ मा जपणउ करेउ जणउ ।। 206 | } (19) गा- आयरिणऊण विप्पाण भासियं पिच्छिकरुण सf | विपुरिय अहर-जुवलं अंपइ बडु किं पलावणं ।। ७ ।। भो भो-भो अमुणंत म तूसहु रूसहु वयण' गज्झु चरि ३ मा दूसछु । सघल खडंग वेय जो धारउ आयमी-मंतत्थ-वियारउ । भणु णय-प्रमाण-गुण जुञ्जद सहितें सुकवि महँ जुज्जइ। अग्र-आसन पर बैठा हुआ यह कौन है? (प्रतीत होता है कि यह) कोई मूर्ख एवं दरिद्र कुलवाला है। (अब) वया किया जाय? (यह कहकर) अन्य कुछ तो शीघ्र ही वहाँ से चले गये और कोई-कोई जब चुप लगा कर वहीं (अधर में) बैठ गये तभी वह मायाची वटुक धम से उठा और मन में रोस धारण करने वाले उन बड़े-बड़े द्विजवरों के ऊपर जा बैठा। तब उन्होंने कृष्ण की उत्त महादेवी के सम्मुख जा कर कहा "हे देवि. इस अज्ञानी को (यहाँ से) शैध ही हटाओ क्योंकि यह कुल वं शील से कलहकारी है तथा बुधजनों की निरन्तर अविन्य करने वाला गण्डी है। यता .."साथ ही वह मायावियों में प्रनुख तथा निधन एवं पुष्टगन है। निश्चित सर से (हम लोगे नेता दिया है अत:) लोग हमें दो। न दें।। 206 ।। (19) कपिलांग बटुक-द्विज द्वारा यथार्थ ब्राह्मण की परिभाषा पाया फड़कते हुए ओष्ठ-युगल वाले उस वक ने उन विप्रों का कथन सुनकर तथा राबकी ओर देखकर कहा-"बहुत प्रलाप से क्या?" || || ___ "भो-गो-भो द्विजवरो, बिना समझे-बूझे रोष-तोष मत करो, और अपने वचनों से मेरे चरित्र को दूशण मत दो। मैं सकल षडंग (वैद्यक, ज्योतिष्ठ, छन्द, व्याकरण, फला. संगीत और वेद) का धारक तथा आगमोक्त मन्त्र छवि ला करने वाला ब्राह्मण हूँ। नय-त्रमाण-Jणों से युक्त हूँ और साहित्यकार में महान् कवि की योग्यता वाला हूँ। तुम लोगों में जो अनेक ग्रन्थों का जानकार हो, वही बोले कि उससे मेरी क्या समानता है? शरीर
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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