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मसाकद सिंह विरबउ पज्जुण्णचरिउ
[11.11.12
पत्ता- एतहि रइ-रमणु विवणिय-वहो खेड्डु करंतु पढुक्कउ। पउर-जणहँ भणे अच्चरिउ उप्पायंतु गुरुक्कल ।। 199।।
(12) गाहा.... विविहा वणम्मि कय-विक्कणाय मणि-रमण-भंड-लोहम्मि ।
संजाय' दविण पउरं हम-गय-वसहाइँ सव्व वत्थेहिं ।। छ ।। सइच्छइँ गच्छइ जाम कुमार पयंडु सुदुद्धरु तिहुअणि सारु। तिरहिं तुरंतिहिं ताब समग्गु खणंतरे रोहिउ सव्वहं मगु। घरेविण दोस्थिर दुटठ-दुरास कहिंतु समागउ पाव-हयास । पिरंभ करेप्मिणु वावि सगब्ब कहिं जलु लेप्पिणु चालिउ पाव । सो गिटठुर वयणहिं दौत्थिउ जाम धरत्तिहिं पडउ कमंडलु ताम । दोहाइउ धाइउ णीरु महंतु हिरण्ण-पवालय ऊह वहंतु। भयाउए लोउ सुविभिय चित्तु पयंपइ हूवउ किंपि जुवंतु। महाणव णिय-मज्जायहिं 'मुक्क असेस बि एक्कवि होयह ढुक्क ।
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घत्ता... और इधर बह रतिरमण पौरजनों के मन में महान् आश्चर्य प्रकट करता हुआ तथा विविध क्रीड़ाओं को करता हुआ (द्वारावती के) विपणि (बाजार-हाट) के मार्ग में घुस गया।। 199।।
(12) तरुणियों के पीछा करने पर द्विज (प्रद्युम्न) का कमण्डल गिरकर फूट जाता है और उसके जल से समुद्र
का दृश्य उपस्थित हो जाता है । आगे चलकर वह मालियों के यहाँ पहुँचता है। गाथा— (उस नगर के) विविध प्रकार के हाट-बाजारों में क्रय-विक्रय योग्य मणि, रत्न, स्वर्ण, लौह आदि
अनेक प्रकार की व्यापारिक सामग्रियों की दुकानें थीं और घोड़े, हाथी, बैल एवं वस्त्र आदि सभी प्रकार
की वस्तुओं से नागरिक जन प्रचुर धनार्जन कर रहे थे।। छ।। जब प्रचण्ड सुदुर्धर एवं त्रिभुवन में सार वह कुमार स्वेच्छापूर्वक जा रहा था, तभी सभी तरुणियों ने तुरन्त ही वहाँ पहुँच कर क्षण भर में उसका मार्ग रोक लिया (घिराव कर दिया)। और बोलीं- "दोनों (छत्री-कुण्डी) वस्तुएँ धारण कर हे दुष्ट, हे दुराशय, हे पापी, हे हताश. तू यहाँ कहाँ से आ गया? समग्र वापी को जलरहित कर हे पापी, उसका जल लेकर कहाँ चल दिया?" जब वह (प्रद्युम्न) उन तरुणियों के निष्ठुर वचनों से दुश्चित्त हो गया, तभी धरती में उसका कमण्डलु गिर पड़ा और उसके दो टुकड़े हो गये। उसका जल बड़े भारी प्रवाह रूप में हिरण्य-प्रवाल समूह को प्रवाहित करता हुआ बहने लगा। विस्मित चित्त होकर लोग भय से व्याकुल हो उठे और कहने लगे कि—"यह क्या हो गया?" क्या महार्णव ने अपनी मर्यादा छोड दी है? और सिमट कर क्या यहीं आ गया है?" यह सब देखकर तथा सुबुद्धि से जिसने तीनों लोकों को जान लिया है, वह (द्विज—प्रद्युम्न)
(12) 12. अ आय दठिण। .. अ. "चु ।