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________________ 210] महाका सिंह बिराउ पज्जुण्णचरित [11.8.1 (8) गाहा– पुणु पइंसामि पुरे वरे वेला लंपि होउ मा मज्झ ! आहार-कज्ज-अत्थे अब्भच्छमि सुपुरिसो कोवि ।। छ।। तं णिसुणेवि जंपइ जुवइयणु जा-आहि भट्ट मा किपि भणु । अण्णाण ण याणहिं मूढ-मणु अवरेत्तहिं सति करेहिं पुणु। एहू महुमहणहो मणहर-घरिणी तहे तणुरुहु तेय. जिय तरणी। कीलेइ एत्थु णउ अवरु णरु पावइ णियंतु सो जम-णयरु । जलयर ससंक संचरहिं जहिं पहाणेच्छ समिच्छहिं केम तहिं । पडिवयणु पयंपिउ दियवरेण लहू कहमि किंपि किं वित्थरेण। कुरुजंगल-पहु-दुज्जोहणेण णिय-तणय सविणयइँ दिण्ण तेण । भरहनु णराहिव गंदणासु बहु चाएण वि पूरिय पयासु । साणंद ससाणु एइ जाम भिल्लेहिं दणंतरे हरिय ताम। दंतिय णिय-सामिहे) तेण वुत्तु इउ कम्म सुटछु अम्हहं ण जुत्तु । (8) वह द्विज (प्रद्युम्न) तरुणियों को भिल्लराज द्वारा उदधिकुमारी के अपहरण की सूचना देता है गाथा- "मुझे आहार करने के लिए उस उत्तम नगर में प्रवेश करता है। कहीं मेरा समय न चूक जाय । मेरी इच्छा है कि कोई सज्जन पुरुष मुझे स्नान करा दे।" ।। छ।। उसको सुनकर युवतियाँ बोली-."हे भट्ट जाओ-जाओ यहाँ पर कुछ भी मत बोलो। हे अज्ञानी मूढ मन, तुम कुछ भी नहीं जानते, अन्यत्र जाकर शान्ति से स्नान करो। यह वापी मधुमथन (कृष्ण) की मनोहर गृहिणी की है। उसका सूर्य को भी जीतने वाला एक तेजस्वी पुत्र है। वही यहाँ क्रीड़ा करता है। अन्य कोई मनुष्य नहीं? यदि कोई यहाँ आता भी है तो उसे मारकर यम-नगर को भेज दिया जाता है? जहाँ जलचर भी शंका सहित क्रीड़ाएँ करते हैं, तब तुम कैसे यहाँ स्नान की इच्छा करते हो?" तब उस द्विजवर ने प्रत्युत्तर में कहा मैं थोड़े में कहता हूँ, विस्तार से क्या प्रयोजन?" - "कुरुजांगल देश के प्रभु दुर्योधन ने अत्यन्त विनयपूर्वक अपनी सुपुत्री भरतक्षेत्र के अर्धचक्री राजा के नन्दन को दी है। अन्य दानों से भी उनकी आशाओं को पूरा किया है। जब वह आनन्द सहित साधन सामग्री के साथ आ रहा था, तभी वन के बीच भीलों ने उसे लूट लिया । पुन: उन्होंने उस कन्या को अपने स्वामी भिल्लराज के पास ले जाकर दिखाया, किन्तु उसने कहा कि यह कार्य अच्छा नहीं हुआ। यह हमारे लिये योग्य कार्य नहीं है।" (8) [.. पत्नर'। (8) (1) ॐ आगच्छति । (2) असा नवरी। (3) अ. भिलपतिना।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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