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________________ 10.21.14] महाका सिंह विरउ पज्जपणचरिउ [201 अवरों परो वि जहि कुमार सो साहु-साहु तुहुँ आसवार । 'तुहु हइण सरिसु गउ गयणे केम णं आसि चक्कि-सिरिपालु जेम । एतहिं वि सुहड कंपंत देह खरपगई लिा माह। विभिय णिय मणे णउ किं मुणंति पुण्णाहिउ हरि-णंदणु भणंति । णिय णयरि भाणु गउ णट्ठ छाउ मउलेवि तुंडु वियलिउ पयाउ। घत्ता— गउ णिय पवंचु उवसंहरेवि रहरमणु वि णिविसेण कह । _ 'भंजेवि मरटु दिग्गयवरहो विष्फुरंतु णं सीहु जह ।। 188 ।। इय पज्जुण्ण-कहाए पयडिय धम्मत्थ-काम-मोक्खाए बुह-रल्हण-सुव-कइ-सीह विरयाए भाणुकण्ण' माणभंगो णाम दहमी संधी परिसमत्तो।। संधी: 10।। छ।। पुफिया विण्हो' स्तोक चरित्र सृष्टि' वसतः कीर्तिः कवेः साम्प्रत्म । श्री सिंहस्य भुवस्तले सुभगं ताब भूम्यते ऽहन्निशम् ।। ग्रामाराम-मटब-पत्तन वनक्ष्मा) भृत्क्षमास: सरित् । नि:शेषं सममेव शुवलमसकृत् संकुतीदं जगत् ।। छ।। चिल्लाता हुआ बोला—"साधु-साधु, तुम्हीं (यथार्थ) असवार हो।" तुम घोड़े के साथ आकाश में किस प्रकार पहुँचे? ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार भूतकाल में चक्रवर्ती श्रीपाल गया था और इधर, सुभटों सहित उस भानु की देह ऐसे काँप रही थी, जैसे मानों तीक्ष्णा पवन से मेघ ही काँप रहे हों। अपने मन में विस्मित वह हरिनन्दन-- भानु कुछ भी सोच नहीं पाया (किंकर्तव्यविमूढ हो गया) अपने मन में बड़बड़ाता हुआ निस्तेज, म्लान मुख एवं विगलित प्रताप अपनी नगरी में गया। घत्ता- अपने प्रपंच को समेट कर यह रतिरमण (प्रद्युम्न) भी उस विनिवेश (उस स्थान) से चला। किस प्रकार, उसी प्रकार जिस प्रकार कि स्फुरायमान सिंह मानों दिग्गजवरों की भीड़ को भंग कर चला जाता है।। 188 ।। __इस प्रकार प्रद्युम्न कथा में धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष को प्रकट करनेवाली बुध-रल्हण के पुत्र कवि सिंह द्वारा विरचित भानु के मानभंग नामकी दसमी सन्धि परिसमाप्त हुई।। सन्धि: 10।। छ।। पुष्पिका -- कवि-प्रशंसा विष्णु के पुत्र प्रद्युम्न के चरित्र की सृष्टि में रहने वाले सिंह कवि की कीर्ति अब पृथिवी तल में सुन्दर रूप से रात-दिन भ्रमण करती है। ग्राम, आराम, मटंब, पत्तन, वन, पर्वत, सरोवर, नदी, निर्झर आदि सबको शुक्ल करती हुई बार-बार समान रूप से इस जगत को सफेद करती है।। छ।। (21) 4-5. अ. वाहणे । 6.. माः। 7. अ.x। पुष्पिका-- 1. अ. सूक्ति। पुष्पिका--(0 पुत्र श्युम्नचरित्रसृष्टिवसत । (2) पिवीमाये। (3) पर्वत । (4) समन। 15) पुन पुनः
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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