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________________ 1941 महाका सिंह विरइउ पन्जुष्णचरित (10.15.1 (15) आरणालं- पुणु वणराइ पेक्खए मणे वियक्खाए मणसिउ वि केम। ___णं पुरि बहु रमेणिया हरिय-बण्णिया वर कंचुलिय जेम ।। छ।। णिरु पंच-वण्ण मणि विष्फुरंतु अणु-दिणु पयंग-ससि पहहरंतु। बहुविह्न विहंगकुलरव रसंत णिय गरिम’ सुरगिरि उवहसंतु। पेक्खइ हरिसुउ पायारउन्न णं पुरि महिलहि कडिमेहलव्ध। धवल-हर सुध्य-माला विहाइ पुरि-बहु पंगुरणा वत्थु णाई। गोउर-चयारि रेहति कह णं तहे वयणइँ वियसियइँ जह। सच्छंभ-सरिस-सर सहहिं केम णं पुरि-पुरंधि लोयणइँ जेम। मज्झत्थु णरिंदहो गेहु विहाइ पुरि-बहु सिरि-सहरु बद्ध गाइँ। इय पेक्खमाणु सरु' विभियउ णहजाणु णहंगणे थंमियउ। आयरेण-पंपुछिइ देवरिसि इह कवण णपरि धण-कण-दरिसि। (15) प्रद्युम्न महर्षि नारद एवं उदधिकुमारी के साथ द्वारामती पहुंचता है आरणाल— पुनः द्वारामती की बनराजि को देखकर वह मनसिज-प्रद्युम्न मन में विकल्प करता है, कि "वह वनराजि कैसी है?" तब कवि कहता है कि "वह ऐसी प्रतीत होती थी मानों पुरी रूपी सुन्दर वधू की हरित वर्ण की उत्तम चोली ही हो ।।। छ।। उस पुरी में पाँचों वर्ण की चमकती हुई मणियाँ हैं, जो अपनी प्रभा से प्रतिदिन सूर्य एवं चन्द्र की प्रभा को हरती रहती हैं। वहाँ वनराजि में विविध प्रकार के पक्षीगण कलरद कर रहे हैं, भानों, वह पुरी अपनी गरिमा से सुमेरु का उपहास ही कर रही हो। उस हरिसुत (प्रद्युम्न) ने वहाँ अपूर्व प्राकार देखा। उसे ऐसा प्रतीत हुआ मानों उस पुरी रूमी महिला की वह कटि-मेखला ही हो। उस पुरी के धवल गृह सुन्दर ध्वजाओं से सुशोभित थे, मानों वे पुरी रूपी महिला के प्रावरण—पहनने के वस्त्र ही हों। वहाँ उस पुरी में चार गोपुर द्वार किस प्रकार सुशोभित थे? जैसे मानों उस पुरी के चार विकसित मुख ही हों। स्वच्छ जल से भरी हुई नदी एवं सरोवर किस प्रकार सुशोभित थे, जैसे मानों उस पुरी रूपी वनिता के लोचन ही हों। उस पुरी के मध्य स्थित राजा का भवन ऐसा सुशोभित था, जैसे मानों पुरी रूपी वधू के सिर पर शेखर ही बँधा हो। इस प्रकार शोभा को देखता हुआ वह मकरध्वज (प्रद्युम्न ) बड़ा विस्मित हुआ और उसने आकाश में ही उस नभोयान को स्तम्भित कर दिया और आदरपूर्वक देवऋषि से पूछा कि..."धन-कण से पूर्ण यह कौन सी नगरी दिखाई दे रही है?" 115) 1.4 सिरे।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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