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महाकड सिंह विरइज़ पजुण्णचरिउ
वंभेयहो कम-कमल णमंत्तिय
हा हा ताय-ताय सुर सारा आसि-काले जड़ एक उप्पणी तो पण मुणिउ केणइ अवहरिय तेण निमित्तइँ चल्लिय जामहि पर वायरु गयणयले ण सक्कइ जइ सुरवरु तो किं दुद्धरसिउ इउ दइच्चु मरेँ नियमण जाणिउँ णिग्विणु सीलु मज्जु भंजेसइ पत्ता — पइँ सक्खि करेविणु देवरिसि मणु फेडमि कलंक-पंक कुलहो उग्गंत
जंपर वहुउ पलाउ करतिय | किं दुक्किन मइँ कियउ भडारा । हउँ विणि-तणयहो पडिवण्णी ! पुणु सच्चहे सुउ पच्छइँ चरियउ । वण्यरेण हरि णिय तामहि । तुम्हारि सुगउ यिड थक्क | वय - कालागुरू अणुसरियउ । वर - वसेण हरिवि तुहु आणिउँ । अइ दुच्चरिउ वि जणु जंपेसइ । जिणवरहो उवरि संजोयमि । अप्पन विणिवेयमि (2) ।। 180 ।।
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आरणालं - ता जपेर जइवरों हिय रवरो सुणि सुए णिरुतं ।
एहु सो तुज् वल्लहो भुवणे दुल्लहो मरि वएणज्जतं । । छ । ।
[10.13.3
ब्रह्मचारी (नारद) के चरणकमल को नमस्कार कर विविध प्रलाप करती हुई बोली..." हा तात, हा तात, हे देवों में सार, हे भट्टारक ऋषि मैंने क्या दुष्कृत किया है। अतीत काल में जब मैं उत्पन्न हुई थी तब मुझे रूपिणी के पुत्र को देने के लिये कहा गया था । किन्तु अब मैं नहीं जानती कि किसके द्वारा अपहृत की गयी हूँ । अब सत्यभामा का पुत्र भी पीछे रह गया है। उसी निमित्त से जब मैं (बारात में ) चली तब मुझे कोई बनचर हरकर यहाँ ले आया है। पर वनचर आकाश में (चलने में ) समर्थ नहीं है। तुम्हारी पुत्री हूँ, तुम्हारे निकट में बैठी हूँ (मेरी प्रार्थना) सुनो - "यदि वह सुरवर हैं तो क्षयकाल के अनुरूप दुर्धर्ष रूप क्यों धारण किया?" किन्तु यह दैत्य है, ऐसा में अपने मन में जानती हूँ। बैर के वंश से हरकर वह मुझे तुम्हारे पास ले आया है। वह निर्दय है. मेरा शील भंग करेगा और तब मैं अतिदुश्चरित्रा हूँ ऐसा लोग कहेंगे । अतः -
पत्ता - हे देव ऋणे, आपको साक्षी कर मैं अपने मन को जिनवर के ऊपर जोड़ती हूँ, कुल के कलंक - पंक को फेडती हूँ और अपने को उग्र तप में लगाती हूँ ।। 180 ।।
(14)
नारद के आदेश से प्रद्युम्न उस उदधिकुमारी को अपना यथार्थ रूप दिखा देता है। वह प्रसन्न मन से उसके साथ द्वारामती पहुँचती है।
आरणाल—- तब काम-विकार को नष्ट करने वाले यतिवर बोले- "हे पुत्रि, ठीक-ठीक सुन। यही वह तेरा पति है, जो भुवन में दुर्लभ है। मेरे वचन पर विश्वास कर तुम उसे पहिचान लो । " । छ । ।
(139 (2) नित्यमि ।