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________________ 10.11.51 महाड़ सिंह विरइउ पज्जुण्णचरिउ 1189 10 पर किं जं हरि णामु पयासिउ तं वणयर-पइ उत्तमु भासिउ। मग्गि-मणि जंतुब मणि सच्चइ परवरिंद विंदष्टि हा' ! लइ मायंग- मत्तवर-हयवर लेहि पहाण तुंग दिढ रहवर। लइ हिरण्णु-मणि-रयणु असेसु वि भूसणु-कोसु-देसु सुविसेसु वि। ता वण-वाहइ उत्तर भासिउ सुहडहँ वयणु सुट्ठ उवहासिउ। एयहिं बहु एहिमि किं किज्जइ जं मणहरु तं एक्कु जि दिज्जइ। घता--- ता विहसिवि एक्के शरवरेण पुणरवि एम पवुच्चइ। __एहु मग्गइ सुंदर राय सुव अवरु ण चित्तहि हच्चइ।। 177।। (11) आरणाल- आयण्णिवि पुलिंदउ गहिर-सद्दउ चवइ गाह जुत्तं । मणोहरणाह पुत्तिया गुण णिउत्तिया देहु-लेहु णिरुत्तं ।। छ ।। एमहि णउ पुणु वच्चहुं लब्भइ णरवर विक्कमंत परिरंभइ । ता चवंति भड-भिउडि भयंकर ऊसरु दुट्ठ रास दुक्किंकर। जा धरणीधर तणयहो दिण्णी सा कह पइँ मणेण पडिवण्णी। उत्तम कहा है। तुम्हारे मन में जो-जो रुचे उसे माँगो, माँगो। पुन: उन नरवरेन्द्रों (भटगणों) ने कहा"मदोन्मत्त हाथी ले लो, बड़े-बड़े घोड़े ले लो। प्रधान उच्च दृढ़ रथवर ले लो, समस्त सोना, चाँदी एवं मणिरत्न लो। भूषण, कोष, एवं सुविशेष देश ले लो।" तब उस वनवाहक (व्याध) ने उत्तर दिया तथा उन सुभटों का भली-भाँति उपहास किया और बोला-"इन बहुतों को लेकर मैं क्या करूँगा? मुझे तो जो मनोहर है, वह अकेली एक वस्तु ही दे दीजिए।" धत्ता-.- तब उनमें से किसी एक नरवर ने हँसकर पुन: यह कहा-"यह सुन्दर राजसुप्त इस कन्या (उदधिकुमारी) को माँग रहा है। इसके चित्त में अन्य कोई भी बस्तु नहीं रुच रही है।" ।। 177।। (II) शबर ने कुरुसेना के छक्के छुड़ा दिये आरणाल– तब पुलिंद ने नरवर के शब्द सुनकर हठ सहित गम्भीर शब्दों में कहा-"नरनाथ की गुण-निधान मनोहर पुत्री मुझे शीघ्र प्रदान करो।। छ।। मेरे इतना कहने पर भी यदि मैं उस (कन्या) को प्राप्त नहीं करता, तब हे नरवर, मैं पुन: तुम्हारे विक्रमी भटों को रोकता हूँ।" तब उन भटों में भयंकर भ्रकटियाँ तानकर कहा-"रे मूढ़, हे दुष्ट, हे गधे, हे दुष्ट सेवक, हट । जो राजकुमारी धरणीधर तनय को दे दी गयी है, उसे माँगने की तूने अपने मन में कामना ही कैसे की?" हर। 5. ॐ g। (10) 3. अ. पर। 4. अ (II) I. अ. चि।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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