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10.7.6]
महाक सिंह विरउ पज्जण्णचरिउ
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कहिमि सुरदारु-घण-सीसमी-पिप्पली-फोंफली-आइ-जूहीहि सेवत्तिया राइयं । कहिमि णिरु णिविड-मोग्गरय मचकुंद-कुंदेहि-चपय-लया छाइयं ।। कहिमि वर करि-करा-"मुक्क सिक्काक्खण"-सित्त करडयल-मय-गलिय कद्दमं । कहिमि सीहस्स अणु" मग्ग लग्ग भमंतं वणे मज्झ2) सरहं पि अइदुद्दमं ।।
।। सुतार णाम छंदो।। छ।। पत्ता- इय एवंविहु तरुवर-वहलु पेक्खइ वणु वणयर गहिरु।
पहजाणइँ हरिसुउ चिक्कमइँ दप्पुभड़-भड थड गहिरु ।। 173 ।।
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आरणालं ... ताबग्गइ सुसाहणं विविह वाहणं णिविडयं तुरंतं ।
दिव्याहरण-लंकिय णिरु असंकियं दिट्ट्यं सरंतं ।। छ।। काहा विटे कार-वरा
चलंत ई गिरिवरा। कहिंपि दिछ हयवरा
अराइ) णिवह-हयवराय कहि पि दिट्ठ रहवरा
वलग्गसूर-रहवरा। कहिंपि दिह जोहया
परस्स जोह मोहया।
कहीं पर सघन देवदारु, सीसम, पिप्पल, पोंफली, जातिफल, जूही एवं सेवन्ती से सुशोभित वन थे तो कहीं पर अत्यन्त सघन मोंगरा, मचकुन्द, कुन्द एवं चम्पकलता से आच्छादित वन था। कहीं पर वन का मध्य भाग विशाल उत्तम हाथियों की सूंडों द्वारा मुक्त सीत्कार (शीकर) कणों से सींचे तथा करटतलों (गण्डस्थल) से गिरे हुए मद-जलों से कीचड़ युक्त हो रहा था। कहीं पर सिंह के पीछे मार्ग में घूमते हुए शरभों (अष्टापदों) से युक्त वह वन भयानक लग रहा था। पत्ता.... इस प्रकार दर्पोद्भट भट समूह को भी आतंकित कर देने वाले हरिसुत उस प्रद्युम्न ने विविध तरुवरों
तथा वनेचरों से युक्त उस गहन वन को नभ-मार्ग से जाते हुए (मार्ग में) देखा।। 173 ।।
मार्ग में कुमार प्रयुम्न ने एक सुसज्जित सैन्य-समुदाय देखा आरणाल— तब आगे चलकर उसने तुरन्त ही सुन्दर सजे हुए विविध अनेक वाहनों से युक्त, दिव्याभरणों से
अलंकृत, पूर्ण निर्भय जाते हुए सैन्य को देखा।। छ।। कहीं पर बड़े-बड़े हाथी देखे, मानों विशाल पर्वत ही चल रहे हों। कहीं पर उत्तम घोड़े देखे, जो शत्रु समूह को मारने वाले थे। जिनमें शूरवीर चढ़े हुए हैं, ऐसे (अनेक) रथवरों को देखा। कहीं पर सुभट योद्धा देखें जो शत्रुओं को मूर्च्छित करने वाले थे। कहीं पर शिविका (पालकी) एवं यानियाँ (डोलियाँ) देखीं, जो सुरेन्द्र के यानों
(6) 11-12. अ. मुक्फारकण । (7) |.बक। 2-3.3 "चन्त। 4-5.|
(6) (1) पिस समामार्गे। (2) का मध्य । (7) {1) शत्रु । (2) हपापशील :