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महाकद सिंह निरउ पन्जुण्णचरिउ
[10.5.10
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घत्ता- पंचास वि जायण विउलु पंचवीस उच्छेहि ण यक्कड़।
तिहि-तिहिं खंडहि भेइणिहिँ सीमंदरु णं विहिणा मुक्कउ।। 172 ||
आरणाल- अवलोएवि पच्चउ पुणु सगवड सरइ गयः नाम ।
अहंदीहो विसालओ कुरुह “आलओ गहणु दिछु ताम || छ ।। कहिमि 'बक्खु मकरंदनि कथारि-करवीर-धाइ-धव-धम्मणं । कहिमि सुविसालया सग्ग सज्जज्जणा एल-कंकोलया-पिप्पली-उववणं ।। कहिमि पउमक्ख-माला-कलंबप्मि-करवंदिया-जूहबर-विचिणी-थाणयं । कहिमि णारंगि-णालियर-खजूरिया जंबु-जंबीरि विजउरिया उबवणं । । कहिमि सिरिखंडू-सिरि तार्ड व ल-सिरिम' या दाडि मी दक्खयारामयं । कहिमि वर करुणि-कणियारि-कणवीरिया-कवणारेहिं अहिरामयं ।। कहिमि पिप्पल-पलासु-वरी-हररई ताम' मालेहि आमाडिया-आउलं । कहिमि णग्गोह-पारोह-झुंवंत सुविसालया लग्ग-खयरावमालाउलं ।।
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धत्ता- वह विजयार्द्ध पर्वत पचास योजन विपल (चौड़ा) और पच्चीस योजन उत्सेध (ऊँचाई) के साथ खड़ा
था। मेदिनी के उन-उन खण्डों की सीमा को धारण करने वाले मानों ब्रह्मा ने ही वह पर्वत रख छोड़ा हो।। 172 ।।
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अटवी का विहंगम वर्णन आरणाल— पुन: गर्वसहित वह मदन उस पर्वत को प्रत्यक्ष देखकर जब आकाश में चलने लगा तब उसने अतिदीर्घ
विशाल वृक्षों का स्थान–गहन वन देखा।। छ।। उस वन में कहीं पर तो उसने कथारि, करवीर, धाई. धाव एवं धामन जैसे उत्तम वृक्ष देखे। कहीं पर सुविशाल सर्ग, सज्ज, अर्जुन. एला, कंकोल एवं पिप्पली वृक्ष वाले उपवन देखें। कहीं पर पद्म, अक्ष, माला, कदम्ब, करवंदिया के झुण्ड तथा बड़े-बड़े चिंचिणी (इमली) के स्थान देखे तो कहीं पर नारंगी, नारियल, खजूरिया, जम्बू, जंबीर (नीबू वृक्ष) एवं विजौरिया के उपवन देखे। कहीं पर श्रीखण्डों एवं ताड़ की श्री देखी। उसमें भी विविध शोभा वाले अनार एवं द्राक्षा (अंगूर) के बगीचे देखे। कहीं पर श्रेष्ठ करुणि (करौनी), कनेर एवं कचनारों वाला सुन्दर वन देखा।
कहीं पर पीपल, पलाश, बहेडा, हर्र, ताम्बूल, आँवला एव आमड़ा (अमरा) से भरा वन देखा। कहीं पर प्ररोह झूमते हुए सुविशाल न्यग्रोध (वट) वृक्ष देखे जो बैठे हुए पक्षियों के शब्दों से आकुल (व्याप्त) थे।
{6) I. अ. काह। 2. अ. सा। 3-4. अ "तर विडव कडपि" ब "वर
कुरम करगि। 5. प. म। 6. प. हल"। 7. अ स'.. । 9 31 10.ब मे"।