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माकड सिंह विरह पज्जुण्णचरिउ
उत्तम पुरिसहँ एउ ण जुज्जइ तं णिसुणेवि मणभवेण तुरंतइँ पविताएँ प्रमुह दढयर-भुव सह- सेण्णु सयलु जीवाविउ
धत्ता - पुणु कहइ महारिसि खयरहो णिसुणि
राय तुहु गुज्झु ण रक्खमि ।
जें कज्जें हउ आवियउ सो वित्तंतु समलु फुडु अक्खमि ।। 166 ।।
णिय जणणो किं अविणउ किज्जइ । पणविउ शिय जपेरु विहसंतइँ । मेल्लवि पिउहे समप्पिय वर सुव । जो मायामय पहरहिं तात्रिउ ।
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दुवई — इह वारमइ णाम पुरि पायड सुरपुरि सम पसिद्धिया । जा रयणायरेण परिवेदिय धण-कण जण समिद्धिया । । छ । ।
तहिं णरिंदु वसुवणंदणी जो अराइ-भड - णिवह पासपो
सच्च रूत्रिणी पियउ मंदिरे
तहँ पज्ञ हुव सुवह कारणे विहिमि तणय उप्पण्ण सारया भाणुकण्ण णामेण सच्च
अ पडु दविंद मद्दणो । कण्हुणाम दर चक्क सासगो । संवसंति णयणार्हि णंदिरे | नियम-चिहुर किय विहिभिसारणे ॥ वहुव भंगलुच्छाह गारया । एउ रूविणिहि पुतु वच्च ।
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में कलंक मत लगाओ । उत्तम पुरुषों को यह उचित नहीं। क्या अपने पिता की अविनय करना चाहिए?" नारद का कथन सुनकर कामदेव ने हँसते हुए तुरन्त ही अपने जनक को प्रणाम किया। दृढतर भुजावाले वज्रदन्तादि प्रमुख उत्तम पुत्रों को बन्धन से छोड़कर पिता को सौंप दिये। सैन्य सहित उन सब वीरों को जीवित कर दिया, जो मायामयी प्रहारों से संतापित थे ।
घता - पुनः महर्षि ने खेचर से कहा- "हे राजन, सुनो मैं तुमसे कुछ भी गुप्त न रखूँगा। जिस कार्य के लिए मैं यहाँ आया हूँ वह समस्त वृत्तान्त स्पष्ट कहता हूँ ।" ।। 166 1
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नारद के साथ कुमार प्रद्युम्न द्वारावती के लिए प्रस्थान करता है
द्विपदी -- "यहाँ (भरत क्षेत्र में ) द्वारावती नामकी पुरी है, जो अत्यन्त प्रसिद्ध एवं साक्षात् सुरपुरी के समान है, जो समुद्र द्वारा वेष्टित और धन-धान्य तथा उत्तम जनों से समृद्ध है । । छ । ।
वहाँ का नरेन्द्र वसुदेव नन्दन है, जो अतिप्रचण्ड एवं दानवेन्द्रों का मर्दन करने वाला है, जो अराति (प्रात्रु) के भट - समूह को नष्ट करने वाला तथा उत्तम चक्र से शासन करने वाला है। उसका नाम कृष्ण है। वह अपनी सत्यभामा एवं रूपिणी नाम की प्रियतमाओं के साथ नेत्रों को आनन्दकारी भवनों में निवास करता है । वहाँ पुत्र जन्म के कारण (परस्पर में ) प्रतिज्ञा हुई कि अपने केशों पर अभिसारण (गमन) की विधि की जाये ।
दोनों रानियों के सुन्दर पुत्र उत्पन्न हुए। अनेक मंगल उत्सव मनाये गये। भानुकर्ण नाम से सत्यभामा का पुत्र कहा गया और यह कुमार रूपिणी का पुत्र कहा गया है। यह पुत्र जब सैकड़ों सुभटों से सुरक्षित था, तब