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महाकड़ सिंह विरहउ पशुपारिज
रइवरेण तज्जिऊण वंचिया खगेण तेवि तुरिउ ता मणुन्भवेण
पत्ता - संवरेण विसज्जिउ तम- पसरु दुमणि मुअवि तासि । अग्गेउ पमेलिउ स्पेयरेण तंवारुणई विणासिउ ।। 163 ।। (21)
दुवई जं-जं खयरराउ आरूतिवि आउछु दिव्यु मेल्लए । तं तं मणु सुड्डु चूडामणि अद्धवहंपि पेल्लए । । छ । । णिएवि कुमारु पयंडु' रणगणे केणोवायएँ एहु रणे जिज्जइ
पुणु पल्लट्टु पासि णिय घरिणिहे बोल्लाविया महएव खगेिंदें विज्जउ तिष्णि देहि अविमप्पइँ ता धुत्तिए पच्चुतरु दिज्जइ दिण्णउ थण्णु सिसुत्तणे जइयहु
अवरु मुक्त गज्जिऊण । पेसि गिरिंदु लेवि । हउ गिरी राउण |
(20) 4. छ गए। (21) .अ. क' ।
ता जमसंवरु चिंतs नियमणे । वइवसपुर-पंथेइ लाइज्जइ । करिव जेम समीउ स करिणिहे । रणरसियइँ कुल - कुवलय चंदें । जुज्झमि जेम समउ कंदप्पइँ । एमहि सामिय भृणु किं किज्जइ । मइमि समप्पियाइ तहिं तइयहो ।
[9.20.9
गिरीन्द्र को फेंका। तब मन्मथ — प्रद्युम्न ने भी तुरन्त ही अपने दिव्यास्त्र से उस गिरीश को नष्ट कर दिया । तब राजा कालसंबर ने ऐसा तम-प्रसार किया कि सूर्य भी उसे नष्ट न कर पाया। उस खेचर राजा ने ताम्रारुण सूर्य को विनष्ट कर उस तम भार को आगे बढ़ाया। 163 ।।
घत्ता
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कालसंवर, प्रद्युम्न से पराजित होकर अपनी रानी कनकप्रभा से विद्याएँ माँगने जाता है और नहीं मिलने पर निराश हो जाता है।
द्विपदी --- खचर-राजा ने रूसकर जिन-जिन दिव्यायुधों को छोड़ा, सुभट चूडामणि मदन ने उन सभी को आधे मार्ग में ही पेल दिया ( रोक दिया ) । । छ । ।
रणांगण में कुमार की प्रचण्डता को देखकर वह राजा यमसंवर अपने मन में विचारने लगा कि "किस उपाय से यह रण में जीता जायेगा? इसे वैवस्वतपुर ( यमपुर ) के मार्ग में कैसे लगाया जाये ?" वह (राजा) अपनी धरिणी रानी के पास उसी प्रकार पलटा- — लौटा, जिस प्रकार करीवर अपनी करिणी के समीप जाता है। रण में रसिक कुलकुमुदों के लिए चन्द्र के समान उस खगेन्द्र ने महादेवी को बुलाकर कहा— "बिना विकल्प किये ( विचार किये बिना) तीनों विद्याएँ मुझे दे दो, जिससे कन्दर्प कुमार के साथ लड़ सकूँ।" तब उस धूर्ता ने प्रत्युत्तर दिया – “हे स्वामिन्, कहिए कि अब मैं क्या करूँ? जब कुमार ने शिशुकाल में मेरा स्तन अपने मुख में दिया था तभी मेरे द्वारा उसे तीनों विद्याएँ समर्पित कर दी गयीं थीं ।" रानी के उम्र वचन से राजा शंकित हुआ। वह उसी प्रकार