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9.16.10]
महाका सिंह विराउ पज्जुण्णचरित
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पत्ता- आयरिणवि तं खग राणियइँ रइरमणु पहरसं दाणियई। जो संवररायहो मण पियउ तं विजउ तिष्णि समप्पियउ।। 158 ।।
(16) दुवई— तो परियत्तु।' पुणु वि मयरद्धउ माइए' कि रूसज्जसि ।
जइ पेसण समाणु' महु जाणहि ता सुउ भणिवि दिन्जसि।। छ।। जाणिवि धुत्तइँ छम्मिय पिय मणे अवर पवंचु रइउ ते तक्खणे । मयण-वसेण तिणु वि णउ गणियउ कररूरेहिं णिय तणु वणियउ। सिहिण-जुक्लु सुकढिणु पवियारिदि रोसविमीसु चित्तु साहारिवि। कबडु करिवि पिय अछइ जामहिं जमसंवरु संपत्तउ तामहि । चवइ राउ हले कि विद्दाणिय णियमरणहो सा कहइ कहाणिय । एउ कम्मु वि रइउत्तु पवुराई कुल-कलंकु दुग्णय संजुत्तई। तं आयण्णिवि कोवइँ कपिउं
वार-बार णिव एवि पर्यपिउ। पहणमि भणिवि जाम णीसरियउ पविदंतइँ तणयई ता धरियउ।
पत्ता- रतिरमण प्रद्युम्न के वचन सुनकर खग रानी कंचनमाला ने हर्षित होकर उस (प्रद्युम्न) के लिए राजा कालसंबर के मन को प्रिय लगने वाली तीनों विद्याएँ समर्पित कर दी ।। 158 ।।
(16) त्रिया-चरित्र का उदाहरण, राजा कालसंवर प्रद्युम्न का वध करने के लिए तत्पर हो जाता है द्विपदी- तब मकरध्वज ने माता से पुन: कहा "हे माई आप मुझसे रुष्ट क्यों हैं? यदि आप मुझे सेवक के समान
मानती हैं, तब वे विद्याएँ मुझे अपना पुत्र कहकर प्रदान कीजिए।" तब उस धूर्त रानी ने अपने मन में छद्म जानकर तत्क्षण अन्य प्रपंच रचे । मदन के दश से उस (रानी) ने कुछ भी नहीं समझा (गिना) और नखों से अपने शरीर को व्रण युक्त कर लिया। कठिन स्तनयुगलों को विदीर्ण कर लिया, रोष विमिश्रित चित्त को धारण कर लिया और कपट करके जब वह प्रिया रानी बैठी थी, तभी राजा यमसंवर वहाँ आ पहुँचा, और बोला—“हे हले, अपने को इस प्रकार विदीर्ण क्यों कर लिया है?" तब उसने अपने पति से वह समस्त कहानी कहीं कि "इस कामुक को जो रतिपुत्र कहा गया है, वह दुर्नय से युक्त है। वह कुल के लिए कलंक है। रानी के मुख से उसकी कहानी सुनकर राजा क्रोध से काँपने लगा और बार-बार इस प्रकार बोला—"मैं इसका वध किए डालता हूँ।" इस प्रकार कहकर वह सजा निकला तभी वज्रदन्त ने उस (वृद्ध राजा) को पकड़ लिया (और बोला-.)
(15) 2-3. अ.४। (16) 1. आ प't 2.4. प्रत्धु ।
(15) (1) कागवाणेन। (16) (1) माधुटित.।