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________________ 168] मताका सिह विरइउ पञ्जुष्णचरिउ [9.14.12 छत्ता--. रइवर भासइ सहु मुणिवरइँ पहुम्महिउ हुवउ महु । जेमणिहि णिय जणणहो मिलमि कहहि किपि उवएसु लहु ।। 15711 (15) दुवई— तो जइणा पयंपियं मार-मणपियं सुण सुतणय ताम। विजउ-तिपिण तुव करे समर धुरवरे चडहि सुहम जाम।। छ।। ता वच्छहि गच्छहि णियय घरे ___जणणिहि दुचरिउ म चित्ति धरे। तुह एय माय गउ एहु जणणु तं णिसुणिवि पुलए भिषण तणु। कामइ अकाम जइ गविउ कह परमप्पउ सुर-णाहेण जह। किर णिय मंदिरि संपत्तु जाम हक्कारउ जणणिहि 'तणउ ताम | पणविवि पणिज्जइ मयरकेउ संचल्लहि सुंदर करि म खेउ। आयण्णिवि सहसा गउ अणंगु जहिं खयरिहि मणे विलसिउ अणंगु। वोल्लाविउ किण्णाएसु करहि लइ वर विज्जउ भो तिषिण धर्राहे। तहे अवसर जंपइ कुसुमसरु एउ अच्छमि हउँ तुह आण्णययरु । घत्ता- रतिवर प्रद्युम्न मुनिवर से बोला—"हे प्रभु आप मुझ पर बड़े प्रसन्न हैं। अब कुछ ऐसा उपदेश कहिए कि जिससे मैं शीघ्र ही अपने माता-पिता से जा मिलूँ। ।। 157 11 (15) कुमार प्रद्युम्न को रानी कंचनमाला द्वारा तीन विद्याओं की प्राप्ति द्विपदी---- तब यति ने मार (कामदेव प्रद्युम्न) के मन को प्रिय लगने वाला उपदेश कहा—“हे सुन्दर पुत्र, तुम उसे सुनो। जिससे समर में धुरन्धर तुम्हारे हाथ में तीनों सुभग विद्याएँ चढ़े।" || छ।। "अत: हे वत्स अपने घर जाओ। जननी (कंचनमाला) के दुश्चरित्र को चित्त में मत धरो। क्योंकि यह तुम्हारी (यथार्थ) माता नहीं है और यह पिता भी तुम्हारा (यथार्थ) नहीं है।" मुनिराज का यह कथन सुनकर कुमार पुलकित शरीर वाला हो गया। फिर उस कामदेव कुमार ने कामरहित यति को किस प्रकार नमस्कार किया? ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कि सुरनाथ परमात्मा को नमस्कार करता है। ___ वहाँ से चलकर कुमार जब अपने भवन में पहुँचा तब माता ने एक सेविका के द्वारा उसको तुरन्त बुलवाया। उस (सेविका) ने मकरकेतु को प्रणाम कर कहा—"हे सुन्दर चलो। अब विलम्ब मत करो।" . ___ यह सुनकर वह अनंग प्रद्युम्नकुमार सहसा वहाँ गया, जहाँ खचरी विद्याधरी कंचनमाला के मन में अनंग (काम) विलास कर रहा था। कंचनमाला ने उसे अपने पास बुलाकर कहा—"मेरा आदेश पूरा क्यों नहीं करते? ये तीनों उत्तम विद्याएँ लो और इन्हें धारण करो।" कुसुमशर कुमार ने उसी समय कहा-..."आपका आज्ञाकारी मैं यहीं हूँ।" (15) | अ पत्तु।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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