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9.14.11]
महाका सिंह विराउ पज्जगणचरित
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घत्ता- सहसत्ति विमाणहो उयरिवि जवलु) णरिंदइ पेल्लिउ ।
पोमायवि सुिस अइ-पवलु वलु पुणु करहिं उच्चल्लिउ ।। 156।।
दुवई वोल्लाविय स तेण णिय पणइणि लइ परिपालि तुहुँ सुउ।
वड्ढतउ पयंडु परिहोसइ सुरकरि कढिण-दिढ-भुवो।। छ।। पुणु णिउ ते णिय पुरदरे पवरे मंगल-घोसिउ खयराय घरे। णयरहो सुसोह अइ बहुय किया णं सग सिरी अवयरेवि थिया । पच्छुण्णु गल्भु णिरु वज्जरिउ महाएविहे णंदणु अवयरिउ। तुहु एयहँ मंदिरे बुद्धिराउ
सुर-णर-किण्णरहूँ जणंतु भउ। जुव-भावें' घडहि जा विगयमलु पेक्खिवि पयवम्महु अतुल-वलु। तुब भाइय थिय अहगीढ़ भया पविदंतहो पमुह वि पंचसया। रज्जाहिलासु णियमणि धरेवि तुव वह-उवाय बहुविह करेवि । जहि-जहिं णिउ तुहुँ सुपयंड-बाहु तहि-तहिं णिग्गउ बहु लहेवि लाहु । सुपुण्णु सहेज्जउ संचरई
तसु खलयणु कुद्धउ किं करई। घत्ता— सहसा ही विमान से उतरकर उस राजा ने उस शिला को पेला (ठला, हटाया) और कमल के समान सुन्दर उस शिशु को अति प्रबल बल वाले राजा (कालसंवर) ने हाथों से ऊपर की ओर उठा लिया ।। 156।।
(14) वजदंष्ट्र आदि 500 सौतेले भाई ईर्ष्यावश प्रद्युम्न की हत्या करना चाहते हैं, किन्तु उन्हें असफलता ही मिलती है द्विपदी तब उस राजा (कालसंवर) ने अपनी प्रणयिनी को बुलाया और कहा कि—“ले, तू इस सुत का प्रतिपालन
कर। बढ़ता हुआ यह प्रचण्ड ऐरावत की सैंड के समान कठिन दृढ़ भुजावाला होमा।"। छ।। पुनः वह राजा कालसंवर उस पुत्र को अपने उत्तम नगर में ले गया। विद्याधरों के घर में मंगलघोष होने लगे नगर की विविध प्रकार से शोभा की गयी। ऐसा लगता था मानों स्वर्ग की श्री-शोभा ही उतर कर वहाँ स्थित हो गयी हो।
"महादेवी को प्रच्छन्न गर्भ (गूढ गर्भ) था, उसीसे पुत्र उत्पन्न हुआ है।" इस प्रकार (सर्वत्र) घोषणा की गयी। सुर, नर एवं किन्नरों को भय उत्पन्न करते हुए बुद्धिमान तुम इस राजा के महल में गये। विगतमल (निर्दोष) जब तुम युवा-भाव में चढ़े, तब अतुल बल वाले तुम्हारे मदन रूप को देख कर वज्रदन्त आदि प्रमुख पाँच सौ भाई तुम्हारे भय से अत्यन्त भयभीत हो गये। उन भाइयों ने अपने मन में राज्य की अभिलाषा धारण कर नाना प्रकार से तुम्हारे वध के उपाय किये। तुम्हारे भाई (तुम्हारे वध के निमित्त) जहाँ-जहाँ तुम्हें ले गये, वहाँ-वहाँ प्रचपड़ बाहु वाले तुम विविध दिव्य-लाभ लेकर ही निकले । ठीक ही कहा है उत्तम पुण्य सहित जो संचरण करता है, क्रुद्ध खल-जन भी उसका क्या कर सकते हैं?
(13) (1) गयाग। (14) 41) जुकणभादेन । (2) प्रचंड।