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________________ 166] महाकह मिग विराउ पज्जण्णचरित [9.13.1 (13) दुवई.... करिमय-कद्दमपि सुप्पत महाझ्य रहबरोहयं ।। असि-सब्बल-भुसंढि-धणु करयल णिरु धावत जोहयं ।। छ।। तं पेक्खिवि हरि अरिसि चडिउ सरहसु सिसुपालहो रणे भिडिउ । सिर-कमलु खुडिउ तहो तेण कहा सरे हंसइ णव-कंदोटू जहा । गउ सुंदरि लेविणु णिय भवणु ठिा सिंहासणे परितुठ्ठ मणु। उप्पण्णउँ तुहुं रूविणिहे केम घुव्वासइँ भासुरु अरुणु जेम। णिरु सुहड सहासहि रक्खियउ ता असुरइँ णिय मणे लक्खियउ। छठ्इँ दिणे जम्म वइस सरेवि णिउ गरुड. अण्णउँ जह हरिवि। खयराडइँ गज्जिय गय गहिरे मेल्लेवि तहिं सिल दिण्णिय उपरे । ता राउ कालसवरु खयरु णिय-पियमुह-इंदीवरु-भमरु । कीलणहूँ णिमित्तइँ जाइ जाम तुहु गिरि तले णिहियउ दिछु ताम | शिशुपाल का वध कर हरि-कृष्ण रूपिणी को हर कर ले आये। उससे प्रद्युम्न का जन्म हुआ, जिसका छठे दिन अपहरण कर यक्ष ने उसे खदिराटवी में शिला के नीचे चाँप दिया और वहाँ से कालसंवर उसे उठा कर अपने घर ले आया द्विपदी-- वहाँ (शिशुपाल के) हाथियों के मदजल से कीचड़ मच रही थी. भयानक अश्व पृथिवी को खोद रहे थे (अर्थात् खुर पटक रहे थे) उत्तम रथवरों का समूह एकत्रित था। असि. सव्वल, भुसुंडि, धनुष आदि करतल में लिये हुए योद्धागण दौड़ रहे थे।। छ ।। उसे देखकर हरि को क्रोध चढ़ा। वह हर्षित होकर शिशुपाल से रण में जा भिड़ा और उसने उसका सिर-कमल किस प्रकार काट डाला? ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कि सरोजर में हंस नवीन कमल को तोड़ फेंकता है। फिर हरि उस सुन्दरी (रूपिणी) को लेकर निज भवन को चला गया, परितुष्ट मन से सिंहासन पर बैठा। वहीं उस रूपिणी से तू किस प्रकार उत्पन्न हुआ उसी प्रकार जिस प्रकार पूर्व दिशा में अरुण भास्कर उत्पन्न होता है। ठीक सहस्रों सुभटों द्वारा तुम भलीभाँति सुरक्षित थे, तो भी असुर ने अपने मन में (उसके जन्म को) जान लिया। वह असुर जन्म से छठे दिन बैर को स्मरण कर तुमको उसी प्रकार हरकर ले गया जिस प्रकार गरुड़ पन्नग को हरकर ले जाता है। वह यक्षराज गर्जना करता हुआ गहरी खदिरावटी में गया और वहाँ तुमको रखकर ऊपर से शिला दे दी। तभी अपनी प्रियतमा के मुख-कमल के लिए भ्रमर के समान विद्याधर राजा कालसंवर क्रीड़ा के निमित्त वहाँ आया और गिरि के शिलातल में रखा हुआ तुम्हें देखा।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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