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9.12.13]
खंडयं-
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महाकइ सिंह विरइड पज्जुण्णचरिउ
(12) 1-2. ब. x 1
(12)
समिद्धउ |
चेईवइ सुपसिद्धउ वल - चउरंग सिसुपालक्खु महाइउ किर परिणहु वि समाइउ । । छ । ।
तिक्खंडावणि परिपालणेण जमुद्धी - जल असह सुमंथणेण जमलज्जुण-तरुवर मोडणेण पूण-जम करणुप्पायणेण वसु सुदेव दण सीराउह-पय-पंकय रएण णारयहँ सुवयण णंतरेण गउ-वलेण समउ तर्हि ढुक्क ता हरिय तेण रई - लालसेण (2)
गोवद्धण- गिरि-वर-धारणेण । 'कालिय-विसहर रुि णत्थणेण । आरिट्ठ कंठ परि तोडणेण । चाणूर-कंस विणिवायरेण । सिहिगल - तमाल-अलि सणिहेण । जायवकुल कोडिहिं परिमिएन । कि गमणु हरिहि णिमिसंतरेण । थिय रूविणि जहि मणसिय भवणे । अय-पवलें (3) मयण परव्वसेण ।
घत्ता — ता धाइय साहणु हयगय वाहणु समउ तेण सिसुपालइँ । (4) तं सीरा उहेण दिव्वाउहेण जोइउ णं खयकालइँ ।। 155 ।।
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राजकुमारी रूपिणी से विवाह करने हेतु शिशुपाल एवं हरि-कृष्ण कुंडिनपुर पहुँचते हैं। स्कन्धक सुप्रसिद्ध चेदिपति महान् राजा शिशुपाल अपनी चतुरंग-बल से समृद्ध होकर रूपिणी को विवाहने के लिये आया । । छ । ।
पृथ्वी के तीनों खंडों का पालन करने वाले, उत्तुंग गोवर्द्धन पर्वत को धारण करने वाले यमुना नदी के अथाह जल का भली-भाँति मन्थन करने वाले कालिया नाग को बुरी तरह नाथ देने वाले, यमल- अर्जुन तरुवर को मोड़ देने वाले आरिष्ट (राक्षस) के कण्ठ को तोड़ने वाले पूतना - यम को उखाड़ देने वाले, चाणूरमल्ल और कंस का निपाल करने वाले वसुदेव और देवकी के पुत्र शिखिगल ( मयूर के गले ), तमाल वृक्ष एवं अलि के समान कृष्ण वर्ण वाले सीरायुध ( हल शस्त्रवाले) बलदेव के चरण कमलों में रति करने वाले करोड़ों यादव कुलों वाले तथा रतिरस के लालची उस हरि ने नारद के वचन सुनते ही निमिष मात्र में गमन किया। प्रबल मदन के वशीभूत होकर हरि बलदेव के साथ तत्काल ही (कुंडिनपुर के ) उस काम भवन में जा पहुँचा जहाँ राजकुमारी रूपिणी कामदेव की पूजा के निमित्त उपस्थित हुई थी ।
पत्ता- हम गज, वाहन आदि साधनों के साथ शिशुपाल जब उस हरि के साथ लड़ने को दौड़ा तब दिव्य आयुध वाले सीरायुध ने उसकी ओर क्षयकाल के समान देखा है। 155 ।।
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(12) (1) बिल्लुना। (2) लंगटेन। (3) वस्वतेनकामेन । (4) महिसी ।