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________________ महाकद सिंह विरहउ पज्जपणचरिउ ही पाच के किसी तलगृह में पड़ जाने के आरप बह दीर्घकाल तक कवियों की दृष्टि से ओझल बना रहा और बाद में जब कुछ राजनैतिक स्थिरता आयी और जब क्रमश: जैन शास्त्र-भण्डारों की भी पुनव्यवस्थाएँ गई उनमें संगृहीत पोधियों का सूचीकरपा पनि कार्य विमा गा, "ब कहीं इ. पू ना के विषय में जानकारी मिल सकी। वर्तमान में प्राच्य-लिपि एवं भाषाज्ञान की दुरूहता एवं ग्रन्थ की विशालता के कारण भी यह ग्रन्थ शोधस्नातकों से अछूता ही बना रहा। वस्तुत: इस कोटि के ग्रन्थों पर शोध-कार्य कर पाना कितना कठिन है. इसका अनुभव कोई भुक्तभोगी ही कर सकता है। पन्जुण्णचरिउ के कवि-परिचय एवं काल-निर्णय के लिए कोई विशेष आधार-सामग्री उपलब्ध नहीं है। किन्तु प०० की आद्य एवं अन्त्य-प्रशस्ति में जो छिट-पुट सन्दर्भ मिले हैं, उन्हीं का विश्लेषण कर उक्त प्रकरण तैयार किया गया है। तत्पश्चात् पृष्ठभूमि के रूप में अपभ्रंश-भाषा एवं साहित्य तथा उसके प्रमुख साहित्यकारों का परिचय देते हुए अपभ्रंश-साहित्य की विविध प्रवृत्तियों एवं हिन्दी काव्यों को उनकी देन सम्बन्धी चर्चा कर, प०च० का स्रोत एवं परम्परा, उसकी विषय-वस्तु तथा उसका अन्य उपलब्ध प्रद्युम्नचरितों के साथ संक्षिप्त तुलनात्मक अध्ययन (मानचित्र सहित) प्रस्तुत किया गया है। पन्च० के काव्यशास्त्रीय अध्ययन-प्रसंग में उसके महाकाव्यत्व को सिद्ध करते हुए उसमें प्रयुक्त रस, अलंकार, छन्द, भाषा, शैली, चरित्र-चित्रण; बिम्ब-योजना तथा कथानक-रूढ़ियों आदि पर प्रकाश डाला गया है। पश्च० ले सामाजिक-चित्रपा प्रकरण में वर्ण-व्यवस्था, प्रमुख जातियाँ एवं उनकी स्थिति, संस्कार, विवाह-प्रकार एवं उनके रीति-रिवाज तथा महिलाओं की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है। राजनैतिक-सन्दर्भ-प्रकरण में राजा, माण्डलिक, सामंत, तल्वर, दूत, युद्ध-विद्या, शास्त्रास्त्र-प्रकार आदि पर विचार गया है। आर्थिक जीवन – आजीविका के साधन-प्रकरण में – कृषि एवं अन्य उत्पादन, वाणिज्य, लघु-उद्योगधन्धे, जिनमें वस्त्र, बर्तन, आभूषण, वस्त्र-सिलाई, काष्ठ, लौह एवं आयुध-निर्माण चर्मोद्योग, पशुपालन. भवन-निर्माण, प्रसाधन-सामग्री-निर्माण, खनिज आदि प्रमुख हैं, तथा क्रय-विक्रय के माध्यम एवं राज्यकर जैसे विषयों को भी उद्घाटिरा करने का प्रयत्न किया गया है। ___ सांस्कृतिक सन्दर्भो में वाद्य, संगीत, नृत्य, उत्सव, क्रीड़ाएँ, गोष्ठियों, भोजन-पान. आचार, सिद्धान्त. योग, पुनर्जन्म, धर्म एवं दर्शन, अंधविश्वास और लोकाचार जैसे विषयों को प्रकाशित किया गया है। प०० में मध्यकालीन कुछ भौगोलिक-सन्दर्भ भी उपलब्ध होते हैं। अत: उनका भी तुलनात्मक अध्ययन करने का प्रपता किया गया है। अन्त में उपसंहार में पच० की विशेषताओं का संक्षेप में दिग्दर्शन कराया गया है। कृतज्ञता-ज्ञापन प्ररतुत ग्रन्थ पर शोध-कार्य हेतु मुझे जिन-जिन संस्थाओं एवं उदार सहृदय विद्वानों से सहायता मिली है, उनमें आमेर शास्त्र-भण्डार जयपुर के निदेशक डॉ. कस्तूरचन्द जी कासलीवाल (अब स्वर्गीय) एवं श्री ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन, ब्यावर के अध्यक्ष पं० हीरालाल जी शास्त्री (अब स्वर्गीय) के प्रति मैं अपना सर्वप्रथम आभार व्यक्त करती हूँ, जिन्होंने पज्जुण्णचरिउ की उक्त हस्तलिखित प्रतियाँ उपलब्ध कराकर मुझे इस दिशा में शोघ-कार्य करने की प्रेरणा दी। श्री गणेश वर्णी दिगम्बर जैन संस्थान, वाराणसी ने मुझे मेरे आर्थिक संकट के समय सन्
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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