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विनम्र निवेदन
1977-78 में अपनी शोध-छात्रवृत्ति प्रदान की तथा शोध-कार्य को साकार रूप प्रदान करने में पूर्ण सहायता प्रदान की, इसके लिए मैं संस्थान के अधिकारियों, विशेषत: उसके तत्कालीन निदेशक श्रद्धेय पं० फूलचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री तथा मन्त्री श्री डॉ० दरबारीलाल जी कोठिया के प्रति भी अपना आभार व्यक्त करती हूँ।
डी जैन ओरिएण्टल रिसर्च इंस्टीटयट (आरा तथा हन्द जैन कॉलेज आरा के संस्करा-प्राकत विभाग के बहुमूल्य ग्रन्थागारों से भी मुझे प्राय: सभी प्रकार की सन्दर्भ-सानग्री की उपलब्धि हो सकी, इसके लिए उनके निदेशक तथा अध्यक्ष प्रो० (डॉ.) राजाराम जैन के प्रति भी अपना आभार व्यक्त करती हूँ।
गुरु तुल्य हितैषी विद्वानों में श्रद्धेय प्रो० डॉ० उपेन्द्र ठाकुर (मगध वि०वि०) श्रद्धेय पं० कैलाशचन्द जी सिद्धान्त शास्त्री, प्रो० उदयचन्द्र जी सर्वदर्शनाचार्य (वाराणसी), डॉ० नेमिचन्द्र जी शास्त्री, प्रो० (डॉ०) राजाराम जैन, प्रो० (डॉ०) देवेन्द्र कुमार जी शास्त्री आदि के प्रति भी मैं अपना आभार व्यक्त करती हैं, जिनकी कृतियों के अध्ययन तथा बहुमूल्य सुझावों एवं ब्रेरणाओं से मुझे अपने शोध-कार्य में विविध सहायताएँ मिली हैं। ___ मैं उन परमश्रेष्ठ पूज्य आचार्य प्रवर विद्यानन्द जी, प्रो० (डॉ०) हीरालाल जी, प्रो० डॉ० ए०एन० उपाध्ये, प्रो० (डॉ०) गुलाबपानी बौधरी ने महात्यी विनों के प्रति भी अपनी भावपूर्ण श्रद्धा व्यक्त करती हूँ, जिनके महनीय ग्रन्थों का अध्ययन कर मैंने उनसे शोध-प्रेरणाएँ ग्रहण की तथा जिन्होंने मुझे इस शोध-प्रबन्ध के लिखने योग्य बनाया।
प्रो० (डॉ०) राजाराम जैन की में विशेष रूप से आभारी हूँ, जिनके निर्देशन के बिना यह शोध कार्य सम्भव न हो पाता। उन्होंने हर परिस्थिति में मुझे प्रोत्साहित रखा और निरन्तर कार्य करते रहने की प्रेरणा दी। ____ मैं भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक परमादरणीय डॉ दिनेश मिश्र जी के प्रति विशेष रूप से आभार व्यक्त करती हूँ जिन्होंने प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रकाशन-प्रस्ताव पर अपनी प्रवर-परिषद् से विचार-विमर्श ही नहीं किया, बल्कि कृति को महत्त्वपूर्ण मानकर उसके प्रकाशन हेतु तत्काल ही अपनी लूमापूर्ण स्वीकृति भी प्रदान कर दी।
प्रकाशनाधिकारी डॉ. गुलाबचन्द्र जी जैन ने विषय की सैटिंग कर तथा प्रूफ संशोधनादि कर उसे प्रामाणिक एवं नयनाभिराम बनाया, 'इसके लिए उनके प्रति भी मैं अपना आभार व्यक्त करती हूँ। ___ मैं चि महावीर शास्त्री, प्रिय श्री संजीव जैन (कुलकु०भा०, नई दिल्ली) तथा श्री सुरेश राजपूत के प्रति भी अपना आभार व्यक्त करती हूँ, जिन्होंने इस ग्रन्थ की प्रारम्भिक मुद्रण-व्यवस्था में अपने मार्गदर्शन से मुझे काफी उत्साहित किया। अन्त में. मैं महाकवि सिंह के ही निम्न कथन के साथ अपनी त्रुटियों के लिए विद्वज्जनों से क्षमा-याचना करते हुए विनम्र निवेदन करती हूँ कि मेरी प्रस्तुत रचना में जो भी त्रुटियाँ हों, मुझे सूचित कर मेरा मार्ग-निर्देशन करें, जिससे आगे चलकर उसमें संशोधन करने का प्रयत्न कर सकूँ। महाकवि सिंह के ही शब्दों में
"ज किंपि हीण-अहियं विउसा सोहंतु तं पि इय कट्यो । धिद्वत्तणेण रइयं खमंतु सचे वि मह गुरुणो।।"
विनयाग्नत विद्यावती जैन
वीरशासन जयन्ती 297/99 महाजन टोली नं02 आरा (बिहार) 872301