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________________ 28] मष्ठाकड सिंह विरइड परजुष्णचरित्र सोद्देश्यता, (ग) पात्र चयन, संवाद एवं कौतूहल तत्व की योजना, (घ) तुक के प्रति आग्रह, आदि । अपभ्रंश के ऐसे महाकाव्यों में पउमचरिउ ( स्वयम्भू), महापुराण (पुष्पदन्त), भविसयत्तकहा ( धनपाल ). हरिवंशपुराण (धवल ), पज्जुण्णचरिउ ( सिंहकवि), जम्बूस्वामी चरित (वीर), बलहपुराण (प) आदि प्रमुख हैं। इन ग्रन्थों ने हिन्दी के पृथ्वीराज रासो आल्हाखण्ड, पद्मावत, रामचरितमानस प्रभृति पर उक्त विषय में अपना अमिट प्रभाव छोड़ा है। (16) कथानक रूढ़ियों: - हिन्दी साहित्य के महारथी विद्वान् पं० हजारीप्रसाद द्विवेदी ने आदिकालीन हिन्दी साहित्य की कथादक-रूढियों पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। उनके अनुसार ऐतिहासिक चरित का लेखक सम्भावनाओं पर अधिक बल देता है । सम्भावनाओं पर बल देने का परिणाम यह हुआ है कि हमारे देश के साहित्य में कथानक को गति एवं घुमाव देने के लिए कुछ ऐसे अभिप्राय बहुत दीर्घकाल से व्यवहृत होते आये हैं, जो बहुत थोड़ी दूर तक यथार्थ होते हैं और फिर आगे चल कर कथानक - रूढ़ि में बदल गये हैं। इस विषय में ऐतिहासिक और निजन्धरी कथाओं में विशेष भेद नहीं किया गया। इस प्रकार सम्भावना पक्ष पर जोर देने के कारण ही कुछ कथानक - रूढियाँ प्रचलित हुई। इनमें से अधिकांश कथानक रूढ़ियाँ अपभ्रंश-साहित्य से ज्यों की त्यों हिन्दी में आयीं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं 1. रानी द्वारा स्वप्न दर्शन और पति राजा द्वारा उनके फल का कथन तथा पुत्र रत्न की प्राप्ति । 2. 3. नायिका का अपहरण । 4. नायक का समुद्र - यात्रा वर्णन एवं समुद्र यात्रा के प्रसंग में उसके अनेक रोमांचकारी संघर्षों का वर्णन | नारद-प्रसंग | पूर्व भव के कर्म फलानुसार पुत्र अपहरणः । 5. 6. नायक की वीरताओं का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन | 7. मुनि का शाप अथवा वरदान - वर्णन | ४. विद्या- सिद्धि । 9. विजन - वन में सुन्दरियों से साक्षात्कार | 10. नायक की उदारता । 11. रूप परिवर्तन अथवा बहुरुपियापन । 12. आकाशवाणी एवं भविष्यवाणी 13. षडऋतु एवं बारहमासा के वर्णन के माध्यम से विरह वेदना चित्रण । 14. श्रृंगार, प्रेम और रोमांच का विकास करने के लिए बहु-विवाह की योजना । 15. जलयान के डूबने पर प्राण-रक्षा के लिए लकड़ी के टुकड़े की प्राप्ति एवं समुद्र को पार करना । आदि 1. हिसा का आदि पृ० 33 (टना 1955) |
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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