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महाका सिह विरहउ पज्जुण्याचरित
1941
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खंडय
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छुई भव्वयणु समुठिओ ता मयणेण पयासियं कुसुमसरु पयंपइ मुणि-पहाण महो उनरि जणणि अहिलासु कुणइँ मं तणय मिसेण जंपइ अनुत्तु किं कारणु एउ पयडहि गुपितु तं णिसुणेवि सुर-णर-खयर वंदु इह अच्छि भरहे-मगहाहिहाणे साकेपणयरि तुहु आसि राउ कहहु णामें णवि गुणणिहाणु जा रज्जु करहु अखलिय पयाव ता वडउरु पहु णिर अतुल थामु
जइ एयंति परिट्ठिओ। जं जगणी विण्णासियं ।। छ।। भो णियम-सील-संजम-णिहाण। कुल-लंछुण अयसु ण चित्तें मुणइँ । पभणइ हउँ जणणि ण तुहु जि पुत्तु। भाया पास्ता दिणिंदु । सुणि मयण पयंपइ मुणि-बरिंदु। वर विसए) विविह विसयह(4) पहाणे । महु णाम अवरु तुव अणुउ भाउ। जुबराउ सु तुहुँ पुणु मूल ठाणु । अवधीर वीर अरिदलण भाव । मंडलिउ कोवि कणयरहु णामु ।
मुनिराज द्वारा रानी कंचनप्रभा का पूर्वभव-कथन । स्कन्धक- जब सभी भव्यजन उठकर चले गये और यति एकान्त में बैठे थे तभी उस मदन ने यह सब प्रकाशित किया जो माता ने विज्ञापित किया था।। छ।।
कुसुमार—प्रद्युम्न ने कहा—“हे मुनि प्रधान, हे नियम. शील एवं संयम के निधान, मेरे ऊपर जननी भोगाभिलाषा (प्रकट) करती है। वह अपने चित्त में कुल-लांछन तथा अयश को नहीं समझती। मुझसे पुत्र के बहाने वह अयुक्त बोलती है और कहती है कि "न मैं तेरी माता हूँ और न तुम मेरे पुत्र ।" आप भव्यजन रूपी पुष्करों (कमलों) के लिये दिनेन्द्र समान हे मुनीन्द्र, उसका क्या कारण है, उसे प्रकाशित कीजिए उसे सुनकर सुर, नर एवं खचरों से वन्द्य मुनिवरेन्द्र बोले-“हे मदन सुनो। ___इस भरतक्षेत्र में विविध देशों में प्रधान ममय नामका एक उत्तम देश है। उसमें एक साकेत नगरी है। तुम अपने पूर्वभव में वहाँ के राजा थे। तुम्हार। नाम मधु था और तुम्हारा छोटा भाई कैटभ नाम से प्रसिद्ध था, जो गुणों का निधान था। तुम्हारे चरणमूल स्थान में वह युवराज था। शत्रु वीरों का तिरस्कार एवं उनके दलन में जब तुम अस्खलित प्रताप युक्त राज्य कर रहे थे। तभी अतुल बलधारी कनकरथ नामका माण्डलिक वडपुर का स्वामी हुआ।"
(4) (1) आरोपितं । (2) कमल। 5) देस। (4) देत्तते । (5) मधुनाम।