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________________ 154] महाका सिंह विरसाउ पजगुण्णचरित [9.2.5 पयडिवि पीणात्तुंग-पयोहर पच्छाइय ण किंपि ऊरुयंवर । णाहि-पएसु वि तहय वतित्तउ दरिसह रोमावलि संजुत्तउ। जह-जह सा परिहास पमेल्लइ तह-तह पज्जुण्णहो मणु डोल्लइ। पभणिउ किं किउ तणु विहलंघलु माइ-माइ संवरि चेलंचलु। ता कयली-कंदल सोमालइँ मयणु पवोच्चइ कंचणमालइँ। हउँ ण माइ तुहु अवरईं जणियउ मइ विण पुत्तु भणेवि मणि गणियउ। राय कालसंवर सहु लीलएँ हउँ गय आसि जाम वण-कीलएँ। खयर-महाडवि तक्खय-गिरिवरे तहिं तुहुँ लडु वणम्मि सिलोयरे । पत्ता- पेच्छवि वालु तहिं घण-विडवि) जहिं. उयरेवि विमाणहो राय। पुणु महो अप्पियउ, मण कप्पिय तं कहमि तुज्झु अणुराय।। 145 ।। खंडयं जइयह एहु सयाणउ होसइ वालु जुवाणउ । तइयह मएमि रमिव्वउ एक चिरकालु गमिव्वउ ।। छ।। पयोधर प्रकट कर दिये। उरु प्रवरों को जरा भी नहीं देंका। इसी प्रकार रोमावलि युक्त त्रिवलि वाला नाभि प्रदेश भी खोल दिया। जैसे-जैसे वह रानी हँस-हँस कर श्वास छोड़ती थी वैसे ही वैसे प्रद्युम्न का मन भी डोल जाता। यह देखकर कुमार बोला कि "हे माता, तूने अपने शरीर को इतना विकल क्यों कर दिया? हे माई, हे माई, अपने अंगों को वस्त्रांचल से ढंक ।" तब कदली दल के समान सुकुमार सुन्दर वह कंचनमाला मदन से बोली कि "मैं तुम्हारी माता नहीं हूँ। तुम्हें तो दूसरी माता ने जन्म दिया है। तुम अपने मन में ऐसा गुनो कि मैं बिना पुत्र की ही हूँ।" (फिर वह मदन को पूर्व वृत्तान्त सुनाते हुए बोली) –“एक बार जब मैं राजा कालसंवर के साथ लीलापूर्वक वन की क्रीड़ा के लिए गयी थी तब वहाँ खदिरमहाटवी में तक्षकगिरि पर वन में शिला के उदर में तुम्हें पाया था।" पत्ता- जहाँ धने-धने वृक्ष थे, वहाँ तुम जैसे बालक को देखकर राजा कालसंवर विमान से उतरे और तुम्हें लाकर मेरे लिये अर्पित किया। तब मैंने उसी समय अपने मन में तुमसे अनुराग करने की कल्पना की थी, वही तुम्हें कह रही हूँ।" || 1451। कुमार प्रधुम्न रानी कंचनप्रभा की भर्त्सना कर उदधिचन्द्र मुनिराज से उसका पूर्व-भव पूछता है स्कन्धक- "जब यह बालक सयाना होगा और जवान होगा, तब मैं इसके साथ रमूंगी और इस प्रकार चिरकाल व्यतीत करूँगी ।। छ।। (29 (1) वृक्ष । (2) विकल्पितं । 3 .अ. कि।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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