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महाकद सिंह विरइउ पण्णचरिउ
[8.17.12
अवहट्टय
(17) सुलक्खणा सुंदरि पंकयाणणा कुरंग-डिंभादि ससुक्ख भायणा । घ.६ मा मल सारिका णियंव-भारेण सुहाई णामिया। टसत्ति भज्जति 'सुणेवि भाइणा सुणाहि देसम्मि कयं विहाइणा। सिणद्ध-रोमावलि थंभ-संचयं णिवद्ध णं गुज्झ पवसि संचयं। तमाल-लीलालि सुणिद्ध-केसिणी णवत्त-वाला सुणवल्ल-वासिणी । णवल्ल-झाणम्मि वणे परिठिया णवजु-वाणेण सरेण दिठ्ठिया। मयंधलीलालस इब्भ-गामिणी किं अच्छरा रंभ सुरिंद भामिणी। मणुब्भवो किं भव-चक्नु) भीअवो सुविस्थि रूवें णवइच्छ आइओ। इमीसु वासस्स संमाण कारणे चरेय-चंदायणयं णहंगणे। किमपि वढेइ किमपि झिज्जए सकालिमा तेण ससि समज्जए। पहुल्ल-राईव समाणु वत्तउ पपुच्छिंऊ तेण खगो-वसंतउ। ठिया वणंते ललणाअ कंदरी अणोव्वमा पेच्छय णंति सुंदरी।
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(17) तरुणी का नख-शिख वर्णन एवं उस पर प्रद्युम्न आकर्षित होकर उसके साथ
विवाह करने की प्रतिज्ञा करता है अवहट्टय – सुलक्षणा, पंकजानना, मृगशिशु के साथ सुखपूर्वक रहने वाली धन के समान कठोर एवं सुपुष्ट स्तनवाली, क्षीण कटि वाली, नितम्ब-भार से नम्र होने के कारण सुन्दर लगने वाली, (कटि भाग के) टस-टस कर टूटती हुई, सुनकर भ्राता, विधाता ने सुन्दरनाभि प्रदेश की रचनाकर उसमें आगे स्निग्ध रोमावलि जटित (दो पैर रूपी) स्तम्भ-संचय किया, मानों गुह्य-प्रदेश का उससे निबन्धन ही कर दिया हो । तमाल वृक्ष की लीला (शोभा) एवं भ्रमर के समान काले केश वाली, नई नवेली सुन्दर नवीन वस्त्र धारिणी, निश्चल ध्यान में मान होकर वह (तरुणी) वन में बैठी थी। उसे नवयौवन वाले कामदेव- प्रद्युम्न ने देखा और मन में विचार करने लगा कि "मदोन्मत्त हाथी के समान लीलापूर्वक चलने वाली वह कोई अप्सरा है, या रम्भा अधवा सुरेन्द्र की भामिनी? वह मनुष्य से उत्पन्न है अथवा महादेव के नेत्र से? अथवा शची ही इस नवेली के रूप में यहाँ आ गयी है?
इस सुगन्धिनी (पद्मिनी वर्ण की श्रेष्ठ) तरुणी के सम्मान के लिये ही मानों चन्द्रमा नभरूपी आँगन की परिक्रमा किया करता है। वह (चन्द्रमा) कभी तो (उस तरुणी को देखकर हर्ष अथवा विषाद के कारण) बढ़ता है और कभी क्षीण हो जाता है। (उसके लावण्य से विषाद युक्त होकर) मानों चन्द्रमा ने उसीसे कालिमा अर्जित कर ली है।"
उस तरुणी का मुख पृथुल राजीव के समान था। उसे देखकर उस प्रद्युम्न ने विद्याधर वसन्त से पूछा-“वन के अन्तिम भाग में स्थित अनुपम यह ललना कौन है? जो देखने में स्वर्ग सुन्दरी जैसी लगती है?" (यह सुनकर-)
117) I. अ. "नु।
(7 (1) शोभत । (2) विश्णा । (3) ईश्टरनेत्रा। 4) सन्गनकरणे।