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________________ 1461 5 10 15 तो वण- रक्खइ हु तर्हि संगरु जक्खु वि जित्तउ तेण कुमारहो दिण्णु पुष्क-ध सहं कुसुम-सरहिं तं गेहिवि खणे जहिं भाभासुरु तो (2) विरय विसमु पाव हु आयव-वारणु जं चिंतई खलु तंपि सुमंगल होइ अगहो महाकर सिंह विरह पज्जुष्णचरिउ हक्किउ जक्खहूँ । णि 'साहिय करू | महियले खित्तउ । तिहुवण सारहो। जिइ जु तिहुवणु । (1) जयं परहिं । भीम महावणे | भीम महासुरु । पयडिवि विक्कमु । कुसुम- सण सुष्ठु । कुसुम-घणाघणु । किंपि अमंगलु। मणइंछिउ फलु । हय-भय-भंगहो (3) घत्ता - पुणु विउल- वणहो संचालियउ मयणु तेहिं खेयर - सुयहिं । I इह पइसतहो संपय पवर जपिउ उच्चाइय भुहि ।। 139 ।। (15) L. अत्र। 2. अब सतहो । में संगर युद्ध हुआ । सधे हुए हाथों वाले कुमार ने यक्ष को जीत लिया और (उठा कर ) पृथिवी पर फेंक दिया तब उस यक्ष ने त्रिभुवन में सार उस कुमार को जगत् में जय का प्रसार करने वाले पंचबाणों के साथ पुष्पधनुष दिया जो त्रिभुवन को जीतने वाला था। उस धनुष को ग्रहण कर वह कुमार भीम नामक महावन में पहुँचा। जहाँ प्रभा से भास्वर भीम नामका महासुर रहता था। उस भीमासुर को हराकर ( प्रद्युम्न ने) अपने पराक्रम को प्रकट किया। उस यक्ष से भी शीघ्र ही कुमार ने सुख देने वाली पुष्प शैया प्राप्त की। गर्मी वर्षा को रोकने वाला पुष्प - छत्र प्राप्त किया ( प्रदान करते समय उस यक्ष ने कहा - भय-भंग से रहित यह अनंगकुमार ) उस घनाघन कुसुम - छत्र से मन में जो सोचेगा वही मनवांछित फल पायेगा, यदि अमंगल होगा तो वह सुमंगल में ही बदल जायेगा । 18.15.2 धत्ता - पुनः वे खेचर पुत्र उस कुमार को विपुलवन की ओर ले गये और उन्होंने अपने हाथ ऊपर उठाकर कहा - " जो इस वन में प्रवेश करेगा, वह प्रवर सम्पत्ति प्राप्त करेगा ।" ।। 139 ।। (15) (1) जगत्रवे। (2) भीमस्य (3) भयभेद ।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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