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________________ 8.15.1] महाका सिंह विरइज पन्जुण्णचरित [145 उवयारिहिं ज ण किउ महायरु तं हउँ पणय महाभय-कायरु | एहु वसंतु णाम विज्जाहरु मइँ छलेण बंधिवि चल्लिउ घरु । तुम्हइँ महो भुअ वंध पमुक्कउ हउँ पुणु आयहो पुट्ठिहिँ ढुक्कउ। एमहि मइमि धरिउ खलु जाणिउ बंधिवि तुम्हहँ पासु पराणिउ। एण) कज्जेण हुवउ वड तरु हउँ पुणु देव तुहारउ किंकर। एउ भणेवि दिण्णउ बे विज्जउ जपसारियउ णिरु वि णिरवज्जिउ । अवरु वि इंदजालु जणमोहणु सुरवर-पर-खेयर संखोहणु। पुणु मयणइँ वसंतु मेल्लाविउ । दोहिंमि तह खंतव्वु कराविउ। णव-जोवण जं ण णयणाणंदणि दिण्ण वसंतेण वि णिय णंदणि। घत्ता- सा परिणेवि कुमारु छुडुवि विणिग्गउ जामहि । अज्जुण-वणु णिव-सुवहि 'पुणु संभाविउ तामहिं ।। 138 ।। (15) तहिं अज्जुण-वणे संपत्तउ खणे। ___10 (14) कुमार प्रद्युम्न को विद्याधर मनोजव ने जयसारी एवं इन्द्रजाल विद्याएँ एवं विद्याधर वसन्त ने अपनी पुत्री नन्दनी का उसके साथ विवाह कर दिया ."महाभय से कायर मैं उपकारी का महादर नहीं कर पाया. अब मैं उसे प्रणत होता है। यह वसन्त नामका विद्याधर है जो छल से मुझे बाँधकर घर चला गया था। हे महाभुज आपने मुझे बन्धन से छुड़ाया है पुन: मैं उसके पीछे गया और अब मैंने भी उसे दुष्ट जानकर पकड़ लिया है और बाँध कर आपके पास लाया हूँ। इस कार्य में बहुत अन्तर (विलम्ब) हो गया। हे देव, अब मैं आपका किंकर हो गया हूँ।" ऐसा कहकर उस मनोजव ने उसे दो विद्याएँ दीं। एक तो निर्दोष जयसारी विद्या और दूसरी जन-मन-मोहिनी, सुर, नर एवं खेचरों को क्षुब्ध करने वाली इन्द्रजाल विद्या। पुन: मदन ने वमन्त को छुड़ाया और दोनों में क्षमाभाव करवाया। वसन्त (विद्याधर) ने भी नवयौवना, जगत् के नेत्रों को आनन्दित करनेवाली अपनी नन्दिनी नामकी पुत्री कुमार प्रद्युम्न को सौंप दी। पत्ता- कुमार ने उस कन्या को परण लिया और वह जब वहाँ से शीघ्र ही चला तब पुन: उन सब राजपुत्रों ने उसे अर्जुन वन बताया ।। 138 ।। (15) कुमार प्रद्युम्न को अर्जुनवन के यक्ष द्वारा पंचबाण युक्त पुष्प-धनुष, भीमासुर द्वारा पुष्प-शैया एवं पुष-छत्र की भेंट तब वह कुमार क्षण भर में, उस अर्जुन-इन में पहुँचा तो उसके वन-रक्षक यक्ष ने उसे हलकारा। उन दोनों (14) I. व. हुं। 2. अ तहो। (140 (3) अंतरपंउितः नमस्कारे । (2) नि:पापः ।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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