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________________ 142] महाफई सिंह विरइउ पज्जुण्णचरित [8.11.1 (11) इमं सुणेवि सो तहिं चडिण्णिऊ चडेवि तेत्थु वाहु फोडु दिण्णउ। पुणो' महारओ करेवि उठिओं णहम्मि ता पडीरयो समुदिओ। सुणेवि तं महासुरो पधाइओ जहिं कुमारु झत्तिं तं पराइओ। भिडेवि वाहु जुज्झि तेत्यु खित्तओ झडत्ति रूविणी-सुएण जित्तओ । भयावि तेण" तस्स2) दिण्ण अंगय) जुर्व पुणो वि कंकणाण चंगयं । सुवत्थ-हारु सार-सारु–संहरो किओ सुरेहि भिरो महायरी। सराव-(सेलयं मुएवि आविओ पुणो वराह सेलु तस्स दारिओ। इमस्स पव्वयस' ओह सम्मुहाणियत्यु भो कुमार दीसए गुहा। जहिं गुमगुमंत-मत्त-छप्पया तहिं विसेर तस्स 'चारु-संपया । धत्ता- तक्खणेण पय मयणु तहिं जहिं बराह रूवे। अमरु । आढत्तु तेण रूविणि सुण्ण समुहँ तेण वि सहुँ समरु ।। 135 ।। कुमार प्रद्युम्न को महासुर ने अंगद, कंकण-युगल, सुवस्त्र, हार एवं मुकुट भेंट स्वरूप दिये यह सुनकर वह कुमार उस गिरि पर चढ़ गया। वहाँ चढ़कर उसने ब्राहु के स्फोट किये (अपनी भुजाओं को ठोका)। पुनः महाशब्द करके वहाँ से उठ खडा हुआ। आकाश में उस महाशब्द की बड़ी प्रतिध्वनि उठी। उस शब्द को सुनकर वहाँ का रक्षक महासुर उस ओर दौड़ा, जहाँ कुमार था, वह वहाँ शीघ्र ही आया । बाहुओं से युद्ध में भिड़कर उस रूपिणि पुत्र कुमार ने उस महासुर-देव को वहाँ से फेंक दिया और झट से उसको जीत लिया। भयान्वित उस देव ने कुमार को अंगद (गदा) और सुन्दर कंकण युगल भेंट में दिया, साथ ही सुन्दर वस्त्र, हार और सब में सारभूत शेखर भी दिया। इस प्रकार उस देव ने उसका महान् आदर किया। ___ वह कुमार जब शल्यकगिरि (शराव पर्वत) को छोड़कर आ गया तब उन कुमारों ने पुनः उस प्रद्युम्न को वराह शैल (शूकराकार पर्वत) दिखाया और कहा—"हे कुमार, इस पर्वत के सम्मुख देखो, उसके समीप जहाँ भौरे गुनगुना रहे हैं, उस गुफा को देखो उसमें जो प्रवेश करता है, उसको सुन्दर सम्पदा मिलती है। पत्तः-- तत्क्षण वह मदन वहाँ चला, जहाँ वराह वेशधारी देव रहता था। उसने रूपिणी सुत उस कुमार को घेर लिया, तब कुमार ने भी उसके साथ युद्ध किया। ।। 135।। (11) 1-2. ॐ प्रति में 'रओ कोटि बाल संठिज' . अ बस। (II) (1) असुरंग। (2) प्रदिमनस्प । (3) गर्ने । 44) सामसारी। (5) सरावपर्वतात्। (6) सूफराकार । (7) समंतात प्रत्यक्षीभूतः ।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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