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8.10.14]
महाका सिंह विरइउ पञ्जष्णचरित
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णिउ जहिं सो वामिउ मयणहो दाविउ पविदसणा' पुणु जंपिउ एहए पेक्खु णिकेयउ सुणि मयणा । रह-चडइ जो परवरु सो संपय धरु होइ खणे तं णिसुणेवि मयणो पहसिय वयणो अजउ रणे। धाएवि संघडियउ सहसा चडियउ तहिमि खणे तं चलइ ण ताडिउ महिहि णिवाडिउ तें फणिणा। ढोइय असि णयउ वि सुरयण कवउ वि सिरि मणेण . . . . . . . . कामंगुच्छलियवि णिरु उज्जलिय वि विष्फुरिया अवरु वि लहलहिय वि णं जम जीह-विवर छुरिया। इय सपल पयच्छिवि वियणु णियच्छिवि समुह अही भणु महु आससणु हउ तुह पेसणु कुणमि णही। पुणु सल्लयगिरिवरु कीलिय सुरवरु गयउ तहिं सोमल्लयगिरि वरु कीलिय सुरवरुठियउ जहि । ता तहिं णं दिग्गउ मयणु विणिग्गउ गयउ कहिं 'पन्जुण्णु गयवरु रिपु महासुरु क्सइ जहि । घत्ता- वज्जदसणु ता तहि चवइ इह गिरिवरहो जु मत्थय 'जो चडई।
महारउ जो करइ त होसिय वहुविह संपडइ ।। 134।।
नेत्रों से प्रेम करने वाले उस काम-करी के व्रणित अंगों को संवार कर, बाँधकर तथा उस (काम-करी) को सुसज्जित कर (प्रद्युम्न ने) उसे उत्तम वाहन बनाया और उस पर वह कुमार प्रद्युम्न, जो कि स्वयं ही कामदेव के रूप में अवतरित था तथा जो कामिनियों के मन को मोहित करने वाला और गुण- गणों से भूषित था, चढ़ा और वेगपूर्वक चला (तथा अपने विद्याधर-भाइयों के पास पहुँचा)।
पविदशन (वज्रदंष्ट्र) उस कुमार को वहाँ ले गया, जहाँ वामी थी उसने वह वामी मदन (प्रद्युम्न) को दिखाई और फिर बोला—"हे मदन, सुनो इस निकेतन को देखो। इस वामी पर जो नरवर चढ़ता है, वह क्षण भर में सम्पत्तिधारी हो जाता है। उस वचन को सुनकर रण में अजेय वह मदन प्रहसित वदन हुआ। वह संघटित (तैयार) होकर उसी क्षण दौड़कर सहज ही में उस पर चढ़ गया। उस वामी में सर्प रूप देव था। उसने उसका अपने पैरों से ताडन किया और उसे पृथिवी पर पटक दिया। तब उस श्री मणिधर सर्प देव ने असि, नपक (म्यान), सुरत्न एवं कवच भेंट में दिये। उज्ज्वल स्फुरायमान काम की अंगूठी और लहलहाती, मानों यम की जीभ हो, ऐसी छुरी भी लाकर प्रदान की। इस प्रकार सब देकर, विजन स्थान देखकर वह अहिदेव सम्मुख आया और बोला- "मुझे आश्वासन (आशीष) दो, मैं आपका दास हूँ, मैं सेवा करूँगा।" पुनः गजदेव का रिपु वह प्रद्युम्न देवों के निवास स्थल सुन्दर उस शल्पकगिरि पर गया जो देवों से क्रीडित था तथा जहाँ एक महासुर रहता था। दिग्गज के समान वह मदन (अपने भाइयों के साथ) वहाँ पहुँचा ! चत्ता-... वहाँ पहुँचते ही वह वज्रदन्त बोला—"इस गिरिवर के मस्तक पर चढ़कर जो महाशब्द करेगा वह अनेक
शुभ-सम्पत्तियों का स्वामी होगा।" ।। 134।।
(10) 3. अ. पविरवणा। 4. अ. मज्मारा। 5-6. अ. प्रति में नहीं है।
7-8. अ.ति में नहीं है। पब प्रति में नही है। 10. ब. चडिवि ।