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8.9.2]
महाका सिंह विर मजुरणचरित
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तहिं गिरि-विसाले
खय-रव बमाले। तरु सार-भूउ
जहिं अमयभूउ। तहिं पिउ-कुमारु
किर होउ मारु । कइ-रूउ अमरु
विरएउ समरू। दंभोलि'2- रएण
सम्भावहएण। जंपिङ सहासु
इह अंवयासु । फलु एक्कु खाइ
तहो जगु जि भाइ। तं सुणेवि वालु
दिढ-भुय-विसालु। तहिं चडिउ तरिउ
मणि-रयण फुरिउ। तो कई) वरेण
हक्कियउ तेण। मायंदु एउ
सुरहमि अभेउ। कहु तणउँ पुतु
कहि तुहुँ पहुत्तु। जा जाहि भज्जु
मा भरहि अज्जु । घत्ता- ता जंपिउ वालेण मरु साहामय कवणु तुहुँ।
महो माइंद ठियासु वहि पिरारिउ जेण मह" ।। 132 ।।
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ता वली समुठ्ठिहा
महाकलीए) धाइओ। सामरो पराइओ वालओ
महावलो विसालओ। एक आम्र वृक्ष के पास ले गया। "यहाँ कपि वेशधारी देव से समर में वह अवश्य मार खा जायेगा।" इस प्रकार विचार कर सदभाव रहित उस वज्र-दष्ट ने हँस कर प्रद्यम्न से कहा-"जो भी इस आम का एक भी फल खायगा. वह जगत में सबको अच्छा लगेगा।" । __ उस वचन को सुनकर भुज विशाल, मणिरत्नों से स्फुरायमान वह बालक तुरन्त ही उस वृक्ष पर चढ गया। तब कपिवेशधारी उस देव ने उस कुमार को ललकारा और बोला—"सुगन्धि में अमेय यह देवों का माकन्द (आम) वृक्ष है। तुम किसके पुत्र हो? तुम यहाँ कैसे पहुँचे? जा भाग यहाँ से, आज अपने प्राण मत गवाँ ।" पत्ता- तब वह बालक बोला—"हे शाखामृग देव, तुम कौन हो? जो माकन्द (आमवृक्ष) पर स्थित होकर मुझे
नि:शंक होकर अपना तेज दिखा रहे हो।। 132 ।।
कुमार प्रद्युम्न को वानर वेशधारी देव द्वारा शेखर एवं पुष्पमाला की भेंट तब बली वानर-देव उठा और महाशाखा लेकर दौड़ा। वह बालक प्रद्युम्न भी विशाल महाबल वाला एवं दुर्धर मृगारि (सिंह) के समान कन्धों वाला था। वह भी समर में दौड़ा और इस प्रकार वानर एवं नर की भिडन्त
(8) (2) वउदोन . (3) देवेन। (4) तेजः । (१) (1) कंदलगृहः ।