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________________ 26] माफइ सिंह घिरइज पज्नुण्णचरित हिन्दी -- का मा जोग कथन के कथे। निक सै घिउ न बिना दधि मथे।। – (पद्मावत प्रेगरताण्ड 6. पृ०119) अपभ्रंश– वाह विछोडवि जाहि तुहुँ हऊँ तेव' को दोसु।। हिअय-ट्ठिा जइ नीसरहि जाणउँ मुंज सरोसु ।। - हिगप्राकृत व्याकरण) हिन्दी – वाह खोपाए जात हो निबार सोहि । हिरदै ते जब जाहुगे सबल जानूंगो तोहि ।। --(सूर. 10/307) (12) वर्णन प्रसंगों का प्रभावः- वर्णन-प्रसंगों में भी हिन्दी कवि अपभ्रंश कवियों के आभारी हैं। महाकवि स्वयम्भू एवं कवि तुलसीदास की तुलना करते हुए महापण्डित राहुल सांकृत्यायन ने लिखा है--"स्वयम्भू ने अपने को चाहे भले ही भारी कुकवि कहा हो, पर तुलसी की तरह उनका यह कहना केवल नम्रता प्रदर्शन मात्र है। जिस तरह तुलसी हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ महाकवि है, वहीं बात अपभ्रंश के क्षेत्र में महाकवि स्वयम्भू की है। स्वयम्भू की कृति ने उन्हें प्रेरणा दी, इसे मानने में कोई हर्ज नहीं है, ऐसी कृतियों के अभ्यास का ही परिणाम है कहीं-कहीं दोतो की कृतियों में आपातत: समानता ।। यथा --आत्मनिवेदन प्रसंग में। स्वयम्भू- बुहयण सयंभु पई विष्णवइ, महु सरिस3 अण्ण णाहि कुकइ । वायरणु कयाइ ण जाणियउ, णउ वित्ति-सत्त वक्खाणियउ। णा णिसुणित पंच महाय कब्बु, णउ भरहु ण लक्षणु छंदु सब्बु । णउ बुझिउ पिंगल-पच्छारु, णउ भामह-दंडिय लंकारु । हउँ किवि ण जाणमि मुक्ख मणे, णिय बुद्धि पयासिय तो वि जणे। जं सयलेंवि तिहुबणे वित्थरिउ आरंभिउ पुणु राहव-चरिख । तुलसी कवि न होऊ नहिं वचन प्रबीना, सकल कला सब विद्या हीना। आखर अरथ अलंकृति नाना, छन्द प्रबन्ध अनेक विधाना। भाव भेद रस भेद अपारा, कवित्त दोष-गुन विविध प्रकारा । कवित्त बिबेक एक नहिं मोरे, सत्यकहउँ लिखि कागद कोरे।' इसी प्रकार स्वयम्भू रामायण का प्रथम काण्ड तथा तुलसी-रामायण का बालकाण्ड, स्वयम्भू-रामायण का 78वां पर्व एवं तुलसी-रामायण का उत्तरकाण्ड, स्वयम्भू-रामायण के 46-47वें पर्व एवं तुलसी-रामायण का सुन्दर काण्ड, स्वयम्भू-रामायण का पर्व 69वां एवं तुलसी-रामायण का लंकाकाण्ड आदि में भी अनेक प्रकार की समानताएँ हैं। (13) हिन्दी की रीतिकालीन साहित्य शैलियों पर प्रभाव:- हिन्दी रीतिकालीन साहित्य-शैलियों पर अपभ्रंश के सुदंसणचरिउ, णायकुमारचरिउ, सन्देशरासन, थूलिभद्दकहा आदि की श्रृंगर-भावना, नखशिख-वर्णन, षडऋतु-वर्णन, विरह-पीड़ा एवं बारह-मासा जैसे वर्णनों का प्रभाव तो है ही, साथ ही उनमें अपभ्रंश-रासाकाव्य के छन्दों यथाकवित्त, दोहा, सवैया, छन्दों के प्रचुर प्रयोग मिलते हैं। यद्यपि शृंगार-भावना. नख-शिख-वर्णन, ऋतु-वर्णन आदि संस्कृत-प्राकृत साहित्य में भी चरमकोटि के उपलब्ध हैं, फिर भी हिन्दी के उक्त वर्णनों पर अपभ्रंश-काव्यों का 1. राहुल निइन्धावली. ० :12-1:5 (पीपुल्स पाहाइस, नई दिल्ली. [970। 2. वहीo. h [12-1151 3. वह 112-115 |
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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