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________________ 7.18.14] 5 10 महाकर सिंह विरष पज्जुष्णचरिउ घत्ता - एहु सो गरु आयउ जो विक्खायउ आसि रिसिंदहिं सिट्ठउँ । अहि-रूउ एप्पिणु पय पणवेष्पिणु जंपइ जक्खु विसिट्ठउँ ।। 123 ।। (18) ताम कुमारें सो परिपुछिउ पुणु सो जंपइ णिसुणहिं सामिय अजय महारणे रक्खमि विज्जउ इह जिण मंदिरे गोउरे अच्छमि णामि तित्यंतरे खयर-पियारउ इतुहुँ आउ भो भो दिढ-भुय विक्कम सारें । कहि तुहुँ अच्छिउ । जक्खु पपई । भो सिव गामिय। तु कारणे । णिरु णिरविज्जउ । णणणंदिरे | कहिमि ण गच्छमि । गहूँ णिरंतरे। पुष्णहिं पेरिउ । जग - विक्खायज । [131 नारायण-सुम । घत्ता - पुणु जंपिउ मयणइँ विहसिय- वयणइँ बहुविहु मंत- समिद्धउ । एहु क्खु पयासहिं (1) फुडु विष्णासहिं कहि महो विज्जउ सिद्धउ ।। 124 ।। इय पज्जुण्णकहाए पयडिय धम्मत्य-काम-मोक्खाए कईसिद्ध विरइयाए पज्जुण्ण-' विज्जालाह वण्णणो णाम' सत्तमी संधी परिसम्मत्तो ।। संधी: 7।। छ । । घत्ता— "यही वह नर आया है, जो प्रसिद्ध है और (जिसके विषय में) ऋषीन्द्र ने कहा था। " ऐसा (विचार कर ) अपने सर्परूप को छोड़ कर उसके चरणों में प्रणाम कर वह यक्ष विशेष वाणी में बोला ।। 123 ।। (18) यक्षराज एवं कुमार प्रद्युम्न का वार्त्तालाप उसी समय विक्रमसार वाले उस कुमार—प्रद्युम्न से उस ( यक्षराज ) ने पूछा - "तुम कहाँ रहते हो?" इसका उस कुमार ने उत्तर दे दिया। पुनः वह यक्ष बोला- "हे स्वामिन् शिवगामिन् सुनिए। हे महारण में अजय, मैं आपके ही कारण निरवद्य विद्याओं की निरन्तर रक्षा करता आ रहा हूँ। नयनानन्ददायक जिनमन्दिर के गोपुर में मैं रहता हूँ, कहीं भी नहीं जाता हूँ। श्री नमिनाथ तीर्थंकर का निरन्तर अन्तर चलते रहने पर हे दृढभुज, हे नारायण सुत, विद्याधरों के प्रिय जगद्विख्यात तुम हमारे पुण्य की प्रेरणा लेकर (आज) यहाँ आये हो । मत्ता - ( यक्षराज की वाणी सुनकर ) विविध मन्त्रों से समृद्ध उस — मदनराज प्रद्युम्न ने विकसित मुख से कहा— "हे यक्षराज, यह प्रकाशित करो, यह स्पष्ट बताओ कि मुझे विद्याएँ कैसे सिद्ध होंगी?" ।। 124 1 इस प्रकार धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष को प्रकट करने वाली सिद्ध कवि द्वारा विरचित प्रद्युम्न कथा में प्रद्युम्न द्वारा विद्या - लाभ वर्णन करने वाली सातवीं सन्धि समाप्त हुई। संधिः 7 ।। छ । । (18) 1-2. अ.× । (18) (1) कथय ।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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