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मलाकर मिह बिराउ पपुग्णचरिज
[7.14.10
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10 पत्ता- पज्जुण्णकुमारहो रणे दुब्बारहो संख-कुंद हरहास कसु । वियरंतु मुणेदिणु मणे वि हसेविशु राम णियणंदणहो जसु ।। 120 ।।
(15) इम चिंतिऊण
मणे मंतिऊण। कया सव्वसंती
पंपुछेवि मंती। सु वारे मुहुत्ते
सुलग्गे पहुत्ते। हयारी महट्टो
जुवाराय- पट्टो। सिरे तस्स बद्धो
स पुणे णिवद्धो। सुमित्ताण तोसो
अमित्ताण रोसो। कयाहट-सोहा
पुरे मंगलोहा। पवज्जति तूरा
ककोहास पूरा। पदट्टेण एया
विहूई अणेया। सवत्तीहिं बुत्ता
असेसा स-पुत्ता। अणेणं सवाणं
णं कस्सेव माणं। भवाणंपि1) मज्झे
भडाणं असज्झे। रणे णस्थि वीरो
समत्थो सुधीरो। कहं तासु आऊ
ण केणावि जाऊ"। जुवाराउ4) एसो
किउ सब्व सेसो। पत्ता- विचरण करते हुए उस राजा कालसंवर ने मुस्कुरा कर अपने मन में यह मान लिया कि "रण में दुर्निवार अपने नन्दन प्रद्युम्न कुमार के शंख एवं कुन्दहार के समान धवल यश किसे प्राप्त है?" || 120 ।।
(15) प्रद्युम्न को युवराज के रूप में देखकर सौतों को बड़ी ईर्ष्या हुई ऐसा विचार कर मन में मन्त्र कर (निर्णय कर) मन्त्री से विशेष रूप से पूछकर उस (कालसंवर) ने सर्वत्र शान्ति वार्ता की, फिर शुभ दिन, शुभ मुहूर्त एवं शुभ लग्न आदि में हतारि का सूचक महत्वपूर्ण युवराज पट्ट पुण्य वाले उस प्रद्युम्न के सिर में बाँध दिया। इस कार्य से सुमित्रों को सन्तोष हुआ और अमित्रों को रोष। हाट-बाजार की शोभा की गयी। पुर में मंगल समूह हुए। बाजे बजने लगे, जिनसे दिशाएँ भर उठीं। इस प्रकार प्रद्युम्न की अनेक विभूतियों को देखकर सपत्मी—सौतों ने अपने सभी पुत्रों से कहा- "इसके समान अन्य किसी दूसरे का सम्मान नहीं है।' भटों के लिए भी असाध्य तुम सभी के सम्मुख अन्य कोई भी सुधीर भट समर्थ वीर नहीं टिक सकता। वह कहाँ से आया है? हम सबमें से किसी से भी वह उत्पन्न नहीं है। वह तो प्रतिपालित पुत्र है। फिर भी उसे सबसे विशेष युवराज-पद दे दिया गया है।
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(15) 1.अर। 2. अ. वि।
(15) (1) पुमादीनां मध्ये । (2) कण्णागतः केनापि न जायते ।
(3) अस्मादीनांराणी मध्ये केनापि न जातः । (4) प्रतिपालितपुरः ।