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महाका सिह विराउ पज्जुण्णचरित
[7.12.9
घत्ता- कंचणमालहे घरे रइउ विविह परिकंचणमउ तेह पालणउँ।
कंचण-कडिसुत्तहो रयण विवित्तहो वालहो मणिमउ खेलणउँ ।। 118।।
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दिवे-दिवे उडु-णाहुव वड्ढेतहो रायइँ पाढणत्थे तहो वालहो । विज्जाहर दरमत्थ-बियाणा पज्जुण्णहा कारणे आणतो ताहँ पुरउ सो गुणइ णिरुत्तर सिक्खइ उरिउ गंध अवगाहइ होइ असेस गुणइ अभासद हरि-करि आरोहण विसिट्ठइँ जुज्झइँ जाइ मल्ल रण जुत्तइँ
छुडु-छुडु पंच-वरिस संपत्तहो। सरल-कमल-दल-यण विसालहो । मेहकूडे पुहर-णह-पहाणा । जे यह बुद्धिवंत उवसंता। लिहइ-पढइ जं 'सत्थि उत्तउ। 'छंदु णिहंटु तक्क जं साहई। णीसेस वि विण्णाण वियासई । 'जोइस-गह-गणियाइमि 'सिट्ठई। कतरि-करण "बंध संजुत्तइँ ।
धत्ता- रानी कंचनमाला के घर में उस बालक के लिए विविध मणि कंचनमय पालना रचा गया । रत्नों से विचित्र कचनमय कटिसूत्र धारण किये हुए उस बालक के खिलौने भी मणिमय थे।। 118।।
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कुमार प्रद्युम्न की शिक्षाएँ दिन प्रतिदिन उडुनाथ चन्द्र की तरह शनैः शनै: बढ़ता हुआ वह बालक पाँचवें वर्ष को प्राप्त हुआ। तब सरल स्वभावी, कमलदल के समान विशाल नयनों वाले उस बालक प्रद्युम्न को पढ़ाने के निमित्त राजा कालसंवर द्वारा मेघकूटपुर के शास्त्रार्थ-विज्ञानी तथा पृथिवी एवं आकाशः-विद्या (अर्थात् भूगोल, खगोल एवं गणित) में प्रधान विद्याधर-पण्डितों को बुलाया गया जिससे कि वह बुद्धिमान उपशान्त प्रकृति का बन जाये।
उन पण्डितों के सामने वह ठीक-ठीक गुणने लगा (अर्थात् गुणनवाला गणित बनाने लगा), जो शास्त्रों में कहा गया है, वही लिखने, पढ़ने तथा सीखने लगा। छन्दशास्त्र, निघण्टु एवं तर्कशास्त्र जो भी उसे पढ़ाये जाते थे उन सभी ग्रन्थों का वह हृदय में अवगाहन करने लगा। उसे समस्त गुणों का अभ्यास हो गया तथा समस्त विज्ञान का विकास हो गया। हरि (घोड़ों) पर चढ़ना तथा हाथी पर चढ़ना भी सीख लिया। नक्षत्रादि-ग्रह-गणित भी सीख लिया। बन्ध—छन्द-बन्ध, (कविता बनाना) तथा कर्ता-करण आदि व्याकरण (अथवा कर्तन-करण सम्बन्धी कृषि-विद्या) मल्लयुद्ध तथा रण-युक्ति विद्या भी सीख ली।
(1371. सच्छभतरु । 2-३. अ लंदु गिड़ कोने गमोहन । 4. अहम।
5. अ. दि.। 6-7.3 जुत्ता :