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7.12.81
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धत्ता
मसिंह विरह पज्जुण्णचरिउ
घता - तहि पट्टण अरिदल वट्टणे राय कालसंवरही घरे । सो पुत्तु तुहारउ जयण पियारउ दंसुव सोहइ कमलसरे ।। ।17।। (12) मुणि भणइ सुणि रूवि' आयणि महावयणु जसु “गणउ 'झस णिवहु तित्थर व विज्जलाण संजुत्तु संभवइ वलहद्द-महुमहणं पयंपि सुणिकपणा अवरे वि जे चिन्ह जिण भणिमंज उवएस सवाण णिय मणहो संतोसु, संजणेवि सो वालु पज्जुण्णु घरे कालसंवरही उत्तंग- धण कठिण- पीउ क्षणालाण
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तुह तणउँ भुवणम् अवयरिंउ 'णार - रथणु । चरम-तणु सिव गमणु भणिऊण मणति । सोलहमि वरिसम्मे आऊण तुह मिलइ । सलहंति मुणि- क्यणु सिर कमलु घुणिऊण । 'ते कहिये गारेण विणिहिं सुविसेस | पुणु कहनि संचलिउ मुणि झति दुहु हणेवि । बढइव ससिकलह-कलु जेम अंवरहो । हत्थेव - हत्थोवि संचर वालाण ।
अरिदल को नष्ट करने वाले उस (मेघकूटपुर) पट्टन में राजा कालसंवर के घर में नेत्रों को प्रिय लगने वाला दर्शनीय एवं सरोवर में खिले हुए कमल के समान तुम्हारा पुत्र सुरक्षित है।। 11711
(12) 1. अए 2. अनु 3. अ तृ । 4. अ त 5 अ. ७.
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नारद ने
प्रद्युम्न की की कुशलता सूचना रूपिणी को देकर उसे सन्तुष्ट कर दिया। प्रद्युम्न का शैशव - वर्णन मुनि ने कहा- "हे रूपिणी, सुन, मेरे वचन ध्यान पूर्वक सुत्र तुम्हारा पुत्र भुवन के मध्य नर - रत्न के रूप में अवतरा है। जिसे गणक-जन झणनृप ( मीनराज – कामदेव ) कहते हैं तथा जो "तीर्थंकर वर्ण वाला है", 'चरमशरीरी है', 'शिवगामी है ऐसा कह कर मानते हैं। वह विविध विद्याओं से युक्त होगा और सोलहवें वर्ष में आकर तुमसे मिलेगा । "
बलभद्र और मधुमथन ने जब यह सुना तो वह अपना सिर चरण-कमलों में झुका कर उन मुनि वचनो की श्लाघा करने लगे, और भी जो चिह्न, जिनेन्द्र ने उपदेश में कहे थे, उन्हें नारद ने रूपिणी से विशेष रूप से कहा । वर्णन करने योग्य नारदमुनि उस रूपिणी के मन में सन्तोष उत्पन्न कर तथा उसके दुःखों को नष्ट कर तत्काल ही वहाँ से अन्यत्र ही चला गया।
वह बालक प्रद्युम्न कालसंबर (राजा) के घर में इस प्रकार बढ़ने लगा, जिस प्रकार आकाश में कलाधर चन्द्र की कला ।
वह बालक उत्तुंग कठोर एवं सुपुष्ट स्तनों वाली युवतियों के हाथ में खेलता हुआ संचरण करता था ।