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________________ महाकइ सिंह विरहउ पञ्जुण्णचरित 17.10.10 श्य णिसुणेवि णिव हत्थुत्तरियज जिणु पणववि णारउ णीस रियउ। घत्ता- मेहकूडेि पुर पत्तउ हरिसु वहतउ तहिं पज्जुण्णु वि दिउ । दीहर णयण विसालहे कंचणमालहे वर उच्छगै णिविट्ठउ।। 11611 अवलोएवि आसीवाउ देवि गउ पुरि बारमइहिँ तक्खणेण रूवि राजले सो मुणि पइछु रूवाएविए पय-गय सिराएँ पुंछिउ पाय-पक्खालणु करेवि मुणि भणइँ माइ पुहविहि रवण्ण जिणि जाणियउ सो सुंदर कुमार तुह तण वालु मइँ दिठु अज्जु पासाय-कलस णह लग्गे चूडे णीहरियउ सइँ दिउ करेवि । सुछाह सइत्तइँ णियमणेण। दिण्णासणे पणवंतहँ वइट्छु । पुणु पणविउ सो गम्गिर गिराएँ। अग्घंजुलि कम-कमलहँ घिववि । पइँ मेल्लिवि अबर प णारि धण्ण । अवयरियउ जो इह भुवण मारु । जो होसइ अरि-गिरिदलणु-वज्जु । वेयड्ढहो दाहिणे मेहकूडे। यह सुनकर राजा चक्रेश्वर के हाथ से उतरा हुआ वह नारद जिनेन्द्र सीमन्धर स्वामी को प्रणाम कर वहाँ से निकला। पत्ता-- हर्षित होकर वह नारद मेघकूटपुर जा पहुँचा और वहाँ उसने दीर्घ एवं विशाल नेत्र दाली कंचनमाला की गोद में बैठे हुए उस प्रद्युम्न को देखा ।। ।।6।। (11) नारद ने रूपिणी को बताया कि प्रद्युम्न मेघकूटपुर के विद्याधर राजा कालसंवर के यहाँ सुरक्षित है। नारद उस प्रद्युम्न को देखकर, आशीर्वाद देकर उसे स्वयं दृष्ट करके (अर्थात् स्वयं ही सारी परिस्थितियाँ समझकर) वहाँ से निकला। अपने मन में सैकड़ों उछाहों के साथ वह नारद तत्क्षण द्वारावती पुरी पहुंचा। वह मुनि रूपिणी के राजमहल में प्रविष्ट हुआ और प्रणाम करके दिये गये आसन पर बैठा। रूपिणी ने चरणों में सिर झुकाकर पुन: उसे प्रणाम किया। चरण पखारकर तथा चरण-कमलों में अजिलि प्रदान कर गद्गद् वाणी से प्रद्युम्न सम्बन्धी समाचार पूछने पर मुनि ने कहा--- "हे माई, तू पृथिवी में रम्य है। तुझे छोड़कर अन्य कोई नारी धन्य नहीं हो सकती। जिनेन्द्र ने बताया है कि वह कुमार बड़ा सुन्दर है। वह ऐसा प्रतीत होता है मानों इस संसार में कामदेव का ही अवतार हुआ हो। हे आर्ये, तेरे बालक को मैंने देखा है। वह शत्रु रूपी पहाड़ों का दलन करने के लिए वज्र के समान होगा। वह विजयाध की दक्षिण दिशा के मेघकूट नामक नगर में है। जहाँ के प्रासादों के कलशों के चूड़े (शिखर) आकाश को छूते हैं। (10) 3. ब ।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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