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7.10.91
महाका मिह यिरइन पज्जुषणपरित
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रुविणिहे वालु पज्झुण्णु णामु पच्चक्षु वि जो अवयरिउ कामु ।
सा छलिहिं रयगिहिं दाणवेण णह-जाण खलण जाणियउँ तेण । घत्ता- धूमद्धय णाम. अतुलिय) थाम, भवि कंचणपह कंतए। णि वालु हरेप्पिणु करह करेमिणु पच्छिम वइरु सरंतइँ ।। 115।।
(10) पज्जुण्णहो असुरहो ज लक्खिउ एहु कारणु वि विरोहहो अक्खिउ। पुणु चक्केसरु भणइ जिणेसरु दिव्व-वाणि पयहि परमेसरु । तहो ठायहो वि कुमारु चलेसइ जणणिहि कइ वासरहो मिलेसइ। कहइ जिणेसरु लद्धक्करिसई वोलीणहमि दुअठ्ठह वरिसइ। दिव्वलाहु सोलह संजुत्तउ
वहु विण्णाण-विज्जा-बलवंतउ। पंगु वि कुंद-मंद बहिरंधल
सयल सुचक्कवंत णिरु पंजल । सुक्क वि तरु फल-कुसुम समिद्ध! होसहिं तहो आगमणि सणिद्धइँ। वा संसउ वामच्छि फुरेसइ इए चिण्हहिं रूविणि घरु एसइ । सा पज्जुण्णु कुमारु महाभडु
को पडिखलइ समरे जस-लंपडु।
उस रूपिणी के बालक का नाम प्रद्युम्न था, प्रत्यक्ष में ऐसा प्रतीत होता था, मानों कामदेव ही अवतरा हो। उसके जन्म की छठी रात्रि में एक दानव का नभोयान उसके ऊपर अटक गया। पत्ता- अतुलित बलवाले धूमध्वज नाम के उस असुर ने पूर्वभव की कान्ता कंचनप्रभा के सम्बन्ध से पूर्व-बैर का स्मरण किया और उस बालक को अपने हाथों से हरकर ले गया ।। 115।।
(10) विदेह क्षेत्र में प्रद्युम्न का पूर्व-वृत्तान्त एवं वर्तमान उपस्थिति जानकर नारद मेघकूटपुर पहुंचता है
(सीमन्धर स्वामी चक्रेश्वर-पद्म से कहते हैं कि—) "इस प्रकार मैंने प्रद्युम्न और असुर के विरोध का जो कारण देखा, वहीं कहा है।" यह सुनकर उस चक्रेश्वर ने जिनेश्वर से पुनः पूछा—"हे परमेश्वर, दिव्य वाणी से यह भी प्रकट कीजिए कि वह कुमार (प्रद्युम्न) उस स्थान से कब चलेगा और अपनी माता से कितने वर्षों के बाद मिल पायगा?" तब जिनेश्वर ने कहा-..."वह कुमार सोलह दिव्य-लाभों से युक्त तथा विविध विज्ञान एवं विद्याओं से बलवान होकर 16 वर्षों में उत्कर्ष को प्राप्त कर लौटेगा। उसके आगमन से लंगड़े (पैर के), लूले (हाथ के), मंद (मन्द बुद्धि) बहिरे एवं अन्धे आदि सभी प्राणी सुन्दर गति वाले तथा सरल, प्रांजल और भली-भाँति देखने, सुनने वाले हो जायेंगे। सूखे वृक्ष भी फल पुष्पों से समृद्ध और स्निग्ध हो जायेंगे। जब वह बालक विष्णु
और रूपिणी के घर आयेगा तब नि सन्देह ही रूपिणी की बायीं आँख फड़केगी। वह प्रद्युम्न कुमार तो महाभट है। यज्ञ का लम्पटी कौन व्यक्ति उसे समर में हरा सकता है?"
(१) (4) प्रचुरवलेन । (5) नीत. ।
(10) . अ. जहं। 2. ज. वि.