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6.21.3]
मडाका सिंत विसर पज्जुपणचरिउ
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दंतछ. रुइसर खग्गे भाइ
णह सायरि फेण व थक्कु णाइँ । कामुय कल-कीला भामिणीहि दप्पणु वसु सामा-कामिणीहिं । णं आयवत्तु रइ-सामियहोर) सिर-रयणु व गोवइ-सामियहो”। रइ-पल्लंकु व किं फलिहो मउ णह-हरिणा णं करे संख कउ । दिक्कण्णहिं णावइ क दुवउ पंचेसु णिसाणा4) *साण दुवउ।
किं अमउ महेवि गणिय यवेक्कु सिसु राहुहि पौडिय कन्ज मुक्क। 10 घत्ता- णं कहरवु कोसाउ कवि अलि रिछोलि असि। माणंसिणि) हिययत्थु णिहण माण विवक्खु ससि।। 103 ।।
(21) ससि जोण्हालंकिय भुवणयले अविलास-सुहास कास धवले । णिम्मलु भणेवि मइँ जाणियउँ जगु णं खीरोवहि पहाणियउ।
सुणिइय वि ण वायसु-हंसु पहिं दीसइ सब्बु वि सियवण्णु जहिं । तथा दाँतों की छवि को रुचिकर बनाने वाला चन्द्रमा आकाश के अग्रभाग में इस प्रकार सुशोभित होने लगा, मानों आकाश रूपी समुद्र में फेन पुंज ही इकट्ठा हो गया हो अथवा वह (चन्द्र) कामुक जनों की मनोहर क्रीड़ा करने वाली भामिनियों और सुश्यामा (तरुणी) कामिनी जनों का दर्पण ही हो, अथवा. मानों रति के स्वामी कामुक जनों का आतपत्र (छत्र) ही हो अथवा मानों गोपति-स्वामी—शिवजी के सिर का रत्न ही हो अथवा क्या वह स्फटिक-मणि द्वारा निर्मित रति का पलंग था? वह ऐसा प्रतीत होता था मानों आकाश रूपी विष्णु ने अपने हाथ में शंख धारण कर लिया हो। वह चन्द्र दिक्कन्याओं की गेंद के समान प्रतीत होता था, अथवा मानों पंचेषु (कामदेव के पांचों वाणों) की धार तेज करने के लिए शान (पत्थर) ही हो । अथवा वह क्पा अमृत-मंथन करके निकला नवनीत का एक थव (पिण्ड) है? या राहु को पीड़ित करने के लिये छोड़ा हुआ कोई शिशु? घत्ता-- मानिनी नारियों के हृदय में स्थित मान को खण्डित करने वाला वह चन्द्र ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानों कुमुदों के निकले हुए कोश पर कोई श्रमर पंक्ति ही विराजमान हो।। 103 ।।
(21) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) चन्द्रोदय-वर्णन, दूतियाँ रानी कनकप्रभा को
समझा कर राजा मधु के सम्मुख ले आती हैं। उस समय चन्द्र-ज्योत्स्ना से अलंकृत भुवनतल ऐसा (शुभ्र) प्रतीत हो रहा था मानों वह शेष नाग के सहास्य अथवा धवल कांस्य से व्याप्त हो । लोक उस भुवनतल को निर्मल कहते हैं, किन्तु मैं तो यह जानता हूँ कि जग ने मानों क्षीरोदधि में स्नान ही कर लिया है। लोक आकाश में काक को देखकर भी कहते थे कि यह काक नहीं, हंस है। इस प्रकार जहाँ रात्रि में (चांदनी से) सभी वस्तुएँ धवल दिखाई देती हैं. जहाँ सरोवर के तीर पर चकवी (20) 2. अ गा"। 3. अ "डु। 4. अ. "म।
(20) (1) कामुक: मोज । (2) कामुकल्य । (३) ईश्वरस्य । (4) पक्षणमर्षण
प्रमाणः । (5) मानयतीना । (6) नत्तुभनवणं । (7) मकोटमति ।
(8) मागन्यमतुं चंद्रः । (21) (J) से।