________________
.19.1]
महाकड सिह विरइउ पज्जुण्णचरिज
[109
(18) ता सामंत-'चक्कु संपत्तउ
णिय-णिय अंतेउर संजत्तउ। कणाह" सहियउ कंधणरहु कोसलपुरि पइटु वडउर पहु। सयलह वर आहरण सुवत्थ' ढोइयाइँ राएण पसत्थई।। कंचणरहहो हत्यि संजोइवि
वर आहरण-तुरंगम ढोएवि। सयल विसज्लिय पुणु संखेवई कणयरहु वि तोसिवि महुएदइँ । भणिउ जाउ तुम्हण णिय-णयरहो णंदण-वण घण कीलिर-खयरहो। कणयप्पहहे जोग्य सिंगाहीद ककण-कडिसन गणिहार दि सिदाहिं जाम-ताम इह अच्छ पुगु सुपसाहणु भूसिय गच्छउ। पत्ता- महुराहो वयणेण आएसु मणेण मुणेप्पिणु। गाउ वडउरवइ जाम राणिय तहिं जि धवेप्पिणु।। 101 ।।
(19) णिय परिवार सहिय कंचणपह अच्छट् जाम 'जच्च कंचणपहा ।
10
(18) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) राजा मधु के आदेश से कनकरथ अपनी
युवती सुन्दरी रानी कनकप्रभा को उसीके यहाँ छोड़ देता है राजाज्ञा सनते ही समस्त सामन्त चक्र अपने-अपने अन्त:पर सहित वहाँ आ पहुँचे। वटपर का प्रभु कंचनरथ भी कंचनप्रभा के साथ कोसलपुरी आया। राजा मधु द्वारा उन आगत सभी सामन्तों को उत्तम आभरण एवं सुन्दर वस्त्र (सिरोपाव) प्रदान कराये गये। कंचनरथ को तो संजो कर हाथी तथा उत्तम आभरण सहित, तुरंग प्रदान किये पर अन्य सभी को यत्किंचित् कुछ-कुछ देकर विदा किया गया। राजा मधुदेव ने कनकरथ को विशेष रूप से सन्तुष्ट कर कहा- "तुम विद्याधरों की घनी क्रीड़ाओं के योग्य नन्दनवन से युक्त अपने नगर को वापिस लौट जाओ। कनकप्रभा के योग्य श्रृंगार के लिए कंकण, कटिसूत्र, मणिहार (यहाँ बनबाये जा रहे हैं वे) जब तक नहीं बन जाते, तब तक वह कनकप्रभा यहीं बनी रहे। पुन. उनके बन चुकने पर उन्हीं से प्रसाधित, आभूषित होकर ही वह यहाँ से जावे।" पत्ता-- राजा मधु का कथन सुनकर तथा उसके आदेश को अपने मन में समझ कर वडपुरपति वह कनक रथ रानी कनकप्रभा को वहीं छोड़कर वापिस लौट गया 1। 101 ।।
(19) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) राजा मधु रानी कनकप्रभा के पास दूती भेजता है।
सन्ध्या एवं रात्रि-वर्णन जात्य कंचन के समान प्रभावाली वह रानी कनकप्रभा जब अपने परिवार के साथ वहाँ रही तभी राजा
(18) 1. अ. "वन। (19) 1. ॐ तत्या
(18) (1) च? होना त्वः। (1941 वर्णनभा।