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________________ 108] महाकड सिंह विरहाउ पज्जण्णरित 16.16.16 घत्ता- पत्तु वसंतु तुरंतु दिरहीयण संतावण। वणसइ कुसुम मिसेण णं "णिय सिया। दरिसावणु।। 99।। (17) कत्थ. विविह जीव साधारहो।) रेहइ वणि मंजरि साहारहो)। कत्थवि रत्त-पत्त ककेलिहि) वणे पइसइ णिज्झर केल्लिहिं । कत्थवि उण्णइँ पत्त-वि'यंगइ मारइ विरहो वि विणु वि पियंगइ। कल्यवि णिरु कुसुमिय वर-पडुल सरि-कोलंति विविह वर-पडुल । कत्थई णिय वि रिद्धि मोग्गयेरहो4) सइरिणि सण्ण करइ भोग्गयरहो। कत्थवि वणे विलसइ कोइलसरु अरुह मुअवि भंजइ कोइलसरु। कत्थवि पढम कलिय वेइल्लइ दरसिय वण-लछिहि वेइल्लइ । कत्थवि कुंदु हसिउ दवणउँ पिय-विरहियह जीव वि दवण्णउँ । पत्ता- कुंकुम-जल- सिचणउं खंडुक्खलिय ण भावइ । अणिमिस-लोयणु राउ कंचणपह मणे भावइ।। 100।। 10 घत्ता- विरही जनों को सन्ताप देने वाला वसन्त तुरन्त आ गया। मानों वनस्पतियों के पुष्पों के मिष से वह अपनी शोभा दिखलाने लगा।। 49।। (17) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-} ऋतुराज वसन्त का वर्णन | विरह-व्याकुल राजा मधु केवल कनकप्रभा के चिन्तन में रत था कहीं पर वनों में विविध जीवों के लिए आधारभूत आमों की मंजरियाँ सुशोभित होने लगीं। कहीं कंकेलि वृक्षों में लाल-पत्र आ गये, तो कहीं वन में निर्झरों के किनारे सुन्दर केलों ने प्रवेश किया। कहीं उपवनों में प्रियंगु वृक्षों के पत्ते उन्नत हो रहे थे, तो विरह भी प्रिया के अंग के बिना भर्तार को मारने लगा। कहीं पर वर पटल (गुलाब) कुसुमित हो रहे थे, तो कहीं पर सरोवर में विविध वर पटल (लाल कमल) क्रीड़ा कर रहे थे। कहीं मोगरा (मुक्तराग) पुष्पों की वृद्धि देखकर स्वैरिणी स्त्री (एकान्त में) भोगीबरों को संज्ञा करती थी। कहीं वन में कोकिल का स्वर शोमता था तो कहीं कोकिल स्वर वाली स्त्री और को छोड़कर भाग रही थी। ___कहीं वनलक्ष्मी ने सुन्दर वेला की प्रथम कली दिखायी, तो कहीं शुभ्र कुन्द पुष्प, और कहीं प्रिया के विरहीजनों के जीव (मन) को पिघलाने वाला द्रोण पुष्प हर्षित हुआ। धत्ता- उस मधु राजा को कुंकुम (केशर) जल का छिड़काव अथवा खंडोत्कलित पानक भी नहीं भाता था। अनिमिष लोचन (टकटकी लगाये) राजा के मन में केवल कनकप्रभा ही भाती थी।। 100 ।। (16) 3-4. अ. प्रति में नहीं है। (17) I. अ. पि। (16)47) सोभः। (17) {1) आधारीभूतण। (2) आम्रस्म । (3) अशोकस्य । (क) मुक्तारागस्य। (5) वणलक्ष्मी दर्शिता । (6) जलकीला।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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