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6.16.15]
मटाकह सिंत विरइउ पज्जुण्णचरित
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भीम वि कइडिहेण महुरायो । महुरायइं गियणयरहो आगिउँ तेण] वि तहे पुरे णयणपणंदिरे णिव वे पवेसिय पि.य-णिय ठाम हो । णट्ट सल्तु जेम हियइँ चहुट्टइ रावउ वि सेउ तणु कंपइ सा आणमि इह केण उवाय. ताय-ताय मा मइ उम्पेक्वहि) ता मंतिहि उवाउ चिंतिज्जइ णिय-णिय अंतेउरहँ सवाणा ताम वसंतु-राउ संपत्तउ तेणा णिच्छिउ जाम सियालउ हिउ करेवि ता पत्तहिं म अवरु वि जो अवमाणि परवरु
दक्खालिउ जयलच्छि सहायहः । मोक्कल्लिवि राव र सम्माणिउँ। लइय दिक्ख जाएवि जिण-मंदिरे । सा कणयप्पह पुणु महुरायहो। तल्लोवेल्लि सरीरहो वट्टइ। तहे अवसरे पुणु सुमइ पयंपइ । तं णिणिवि जंपिउ महुराय। तेम करि जेम जीविउ महो रक्खहि । णायकह) आणउँ पेसिज्जइ । आणावळि पासेस वि राणा। फग्गुणि णिय दूवउ पेसंता। केसु कलियो मिसेण मुहु कालउ। सो जाएवि केयार पद्धक्कउ। अवसु स रइ भउ भरइ मेल्लिवि वह
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फैटभ ने जयलक्ष्मी की सहाय बाले मधुराजा के लिए भीम को दिखाया (अर्थात् जीवित बंधा दिया)। मधुराजा भीम को अपने नगर ले आया। बंधन छोड़कर उस (भीमराज) का समुचित सम्मान किया। उस भीम ने भी नमनानन्ददायक पुर में जिनमन्दिर में जःकर दीक्षा ले ली। अन्य राजागण भी अपने-अपने स्थानों पर चले गाये।
(राजा भीम के वश में हो जाने के कारण—) नाष्ट शल्य उस मधु राजा के हृदय में कनकप्रभा वाली बह शल्य पुनः चुभने लगी। उसके लिए उसके शरीर में पुन. तड़फड़ी होने लगी। उसके अनुराग के कारण राजा को पसीना आने लगा, शरीर काँपने लगा, उस अवसर पर सुमति मन्त्री पुनः बोला—"उस कनकप्रभा रानी को किस उपाय से लाऊँ?" यह सुनकर राजा मधु बोला—"हे तात, हे तात मेरी उपेक्षा मत करो। ऐसा उपाय करो, जिससे मेरे जीवन की रक्षा हो।"
तब मन्त्री सुमति ने हितकारी उपाय सोचा कि (क्यों न) नायक राजाओं को (दूत द्वारा) आज्ञा प्रेषित की जाय और अपने-अपने अन्त:पुर सहित सब राजाओं को यहाँ बुलाया जाये?"
उसी समय ऋतुराज वसन्त आ पहुँचा। उसने अपना फाल्गुनमास नामका निज दूत भेजा। उस दूत ने सियाला (शीतकाल) को डाँटा। तब वह सियाला केश (पलाश) की कली के मिष से काला मह करके स्थित हो गया। तब पत्रों ने उसे छोड़ दिया (पतझड़ होने लगा)। अत: वह शीतकाल जाकर केदार में (हिमालय में) दुक गया, और भी जो अपमानित नरवर घर (पानी) को छोड़ कर चले गये थे। वे भी रति से अवश (विवश) हो कर भय (वधु) को स्मरण करने लगे (जो पान केदार चले गये थे वे घर को आने लगे।
(16) 1. अ 'उले। 2. अ "ग"।
(16) () मे । शानणरु (3)दन ।।4) 'फागुगलेन ।
15) अगमानं न । 16 निगरा।