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6.10.10]
मछाका सिंह विरहन पन्जुण्णचरिउ
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(10) कहिमि तं चक्कु हय ढक्क-भेरी सर . कहिमि पहु-पड़ह दडिणंद वज्जिय खरं। काहाने कलात-ल-दुमु-दुनिय कोलाहल कहिमि खर-करड़ तडतडिय गुरु काहलं । कहिमि हय घट्ट उट्ठंत जण 'संक्कडं कहिमि खोलंत भड धंत णिरु तक्कड़। कहिमि मंडलिय वह मिलिय चल-चामरं कहिमि सामंत-धीमंत पर डामरं । कहिमि दुग्घोट्ट-संघट्ट लोटिर' हयं कहिमि रवण खंभ फरहरिय मरु धय घयं । कहिमि घण. छत्त सिग्गिरिहि छाइय णहं कहिमि रय-पवर पसरत हय रवि-पहं। कहिमि असि-कृत झलकत चल सव्वलं कहिमि कडितल्ल वा वल्लमुज्जलं । विसम घण थट्ट फोटंतु कय 'समथल चलिउ समय रेण महुराय रायहो वलं । धत्ता..... एम चउरंगु समिद्ध णिसिवासरु अगणंतउ।।
वडउरपुर णामेण जंतु-जंतु संपत्तउ।। 93 ।।
(10) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन-प्रसंग में-) राजा मधु का चतुरंगिणी सेना के साथ
अरिराज भीम के साथ युद्ध हेतु बडपुर पहुंचना कहीं पर तो चक्राकर ढक्क वाद्य और कहीं भेरी के स्वर हो रहे थे। कहीं पर दडिण-दडिण का कर्कश स्वर करने वाले पटु-पटह बाजे बज रहे थे। कहीं पर टिविल नामक बाजों का कल-कल, विल-विल, दुम-दुम का कोलाहल हो रहा था, तो कहीं पर बड़े-बड़े काहल नामक वाद्य कर्कश कर-कर, तड़-तड़ शब्द कर रहे थे और कहीं पर घोड़ों के थट्ट से उरते हुए लोगों की भीड़ थी, तो (उस शिविर में) कहीं पर अत्यन्त उत्कट भट खेल (अभ्यास) कर रहे थे, तो कहीं पर शत्रुओं के लिए भयंकर बुद्धि वाले सामन्त गण थे। कहीं पर दुर्जेय घोड़ों का झुण्ड लोट रहा था, तो कहीं पर रम्य खम्भों पर वायु से काँपती हुई ध्वजाएँ फहरा रही थीं। कहीं पर घने छत्रों के अग्र शिखरों से आकाश ढका जा रहा था, तो कहीं पर फैलते हुए रजप्रसर से सूर्य की प्रभा हत (नष्ट) हो रही थी। कहीं पर असि, कुन्त एवं चंचल सव्वल झलक रहे थे। कहीं उज्ज्वल बल्लम कटितल को चंचल बना रहा था। कहीं विषम घम भूमि को फोड़कर उसे समस्थल कर रहे थे। इस प्रकार मधु राजा का सैन्यबल सम-भार से (सन्तुलित—एक साथ मिल कर) चला।। घत्ता- इस प्रकार समृद्ध चतुरंगसेना चलते-चलते रात्रि दिवस न गिनती हुई वडपुर नामके पुर (के पास)
में जा पहुँची।। 93 ||
(10) 1. अ. संकुलं । 2. अ "2 1 3. अ मछल। 4. अ. "भ'।
(10(1) समानभूमि।