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________________ 6.6.2) महाका सिह दिरहउ पज्जुण्णचरित [97 (5) तेण बोल्लाविय सा सुमणोहरि नाटकल-घण उन पमोडारि हले वीसरिय काई हिय वरभवे पाउ करेवि णिवडिय जं रउरवे । पुणु कुक्कुरि चंडाल भवंतरे जइ बेण्णिवि संठियइँ णिरंतरे ।। तं तुह चित्ते काइँ ण चमक्कइ भोयासत्तहे मणु ण विमुक्कइ । लहिदि अज्जु दुल्लहु मणुव'त्तणु करि अप्पहिउ मुहि परिणत्तणु। तं णिसुणेवि सुमरिय जम्मंतरे मुच्छ पण्णिय करिणिहे उप्परे । धाइउ उब्बोलियइँ सुसंचिय घणसारहो जलेण अहिसिंचिय। उम्मुच्छाविय जाम किसोयरि 'एत्यंतरे पुणु गय जिणवर घरे। पत्ता- पुछिवि जणणु जणेरि ताइ सुकंचण वण्णए।। मालए जिणपय महेवि मुणि मग्गिाउ तउ कण्णए ।। 88 ।। तो ताहि तिगुत्ति मुणीसरेण तउ दिण्णु ताम णिज्जिय-सरेण। एउ भणिउ पसंग वसेण अज्जु महु 'सुणु पज्जुण्ण-कहा. कन्जु । (5) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) नन्दीश्वर देव द्वारा राजकुमारी माला को प्रतिबोधन एवं स्वयंवर के पूर्व ही उसका दीक्षा-ग्रहण उस नन्दीश्वर देव ने, चक्राकार घने उत्तुंग पयोधरों वाली उस कन्या को अपने पास बुलवाया और बोला"हले, पूर्वभव को क्या तू भूल गयी? जब पाप करके रौरव नरक में जा पड़ी थी। पुन: चाण्डाल भव के मध्य कुक्कुरी हुई थी। जहाँ हम और तुम दोनों स्थित थे। उस समय तेरे चित्त में यह विकल्प क्यों नहीं उठा कि भोगासक्ति संसार का कारण है? अब दुर्लभ किन्तु परिणमनशील मनुष्य-पर्याय पाकर आत्महित करो और मरो।" वह (देववाणी) सुनकर उस कन्या को जन्म-जन्मान्तरों का स्मरण हो आया और वह हथिनी के ऊपर ही मूर्छित हो गयी। धाय ने स्वर्ण पात्र में संचित कर्पूर-जल से उसका सिंचन किया। जब उस किशोरी की मूर्छा दूर हुई तभी--- पत्ता- स्वर्ण वर्ण वाली वह कन्या माला अपने माता-पिता से पूछ कर जिन-भवन चली गयी तथा जिनचरणों की पूजा कर उस (कन्या) ने मुनिराज से दीक्षा माँगी।। 88 है | (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) राजकुमारी माला को मुनिराज त्रिगुप्ति द्वारा दीक्षा प्रदत्त तब उस जिन-भवन में काम-शर-विजेता मुनीश्वर त्रिगुप्ति ने उसे जिनदीक्षा दी, तथा प्रसंग वश कहा कि हे आर्ये, प्रद्युम्न कथा के प्रसंग में मणिभद्र, पूर्णभद्र की विशिष्ट कथा को कौतुहल के साथ मनोयोगपूर्वक सुनो (5) I. अ. अ.। (6) 1. अ. ब. ।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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