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महाफा सिंह विरहाउ पञ्जुण्णचरिउ
[5.12.8
सुणेविणु मतको मोतिय गु परिणय कवण...पोतियदामु। धत्ता— तहि अवसरे णिवेण कय जण सिवेण चालिय दुह-दुरिय-णिवारणे।
पुरयण कय सण भेरी-रवेण मुणि-वंदण भत्तिए कारणे ।। छ ।। घत्ता'- आणंदहो भरियउ मुणि संभरियउ णरवइ णयरहो संदलिउ । णिय कंत सइत्तउ वल-संजुत्तउ भविय विंदु जहिं मिलयउ।। 79 ।।
(13) गज्जंत गयं
हिंसंत हो। मिलियालि सयं
सु धुव्वंत धयं। खेल्लत भई
सामंत थडं। घोलिर चभरं
सिग्गिरि पवरं। घुरहुरिय रहं
तासिय करह। वज्जिय तूरं
दिम्मुह पूरं । कत्थवि गुठं
करि-भय-तड़ें। इम णयर जणं
मुणि भत्ति मणं। मण्णवि सहियं
णरवइ 'महियं
स्पष्टाक्षर वाले कथन सुनकर राजा ने उसको कंकण एवं मोती लगी हुई माला प्रदान की। घत्ता-- उसी अवसर पर जनकल्याणकारी, राजा ने पुरजनों के निमित्त भेरी-नाद करा दिया तथा दुःख रूपी
पाप का निवारण करने वाले मुनिराज की वन्दना करने के लिए चल पड़ा।। छ।। पत्ता- आनन्द से भरकर, मुनि (महेन्द्रसूरि) का स्मरण कर वह राजा अपनी पत्नी के साथ सुरक्षा
अधिकारियों सहित नगर से चला तथा वहाँ जा मिला जहाँ भव्यजन (प्रतीक्षारत) थे।। 79।।
(13) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) राजा अरिंजय एवं उनके प्रजाजनों को मुनिराज महेन्द्रसूरि का धर्मोपदेश ___ कोई गरजते गज पर जा रहे थे तो कोई हींसते (हिनहिनाते) हुए घोड़ों पर चढ़े थे। जहाँ सैकड़ों भ्रमर .इकट्ठे मिल गये थे, ऐसे सुगन्धित द्रव्य लगाये मनुष्य थे। कोई ध्वजा उठाये हुए थे, कोई भट खेल रहे थे, तो कहीं सामंतों (मल्लों) के झुंड इकट्ठे थे। कोई चमर चला रहे थे। कोई ऊँटों को ताँसते हुए श्रीगिरि प्रवर समान रथ को आगे चला रहे थे। कोई तूर बजा कर दिशाओं को पूर रहे थे। कहीं गुट्ट के गुट्ट हाथी के भय से प्रस्त थे। इस प्रकार मुनिराज की भक्ति के मन वाले नागरिक जन वहाँ चले जहाँ नरपति से पूजित तथा स्वहित को जानने वाले यतिनाथ थे । सबने उन मुनिराज के दर्शन किये। राजा आनन्दित हुआ। सभी के दर्शन कर लेने
(12) I. अ. यह घता अनुपलब्ध है। (13) 1. अ. 'म',
(13) (1) स्वहितंनरतणं।