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________________ प्रस्तावना [21 (2) आध्यात्मिक-काव्य ___ अपभ्रंश भाषा में लिखित आध्यात्मिक-काव्य के सर्वप्रथम कवि जोइन्दु माने जाते हैं, जिन्होंने अपने परभण्ायासु सह जोयसात' (परमात्नप्रकाश एवं योग्सार) में अध्यात्म का सुन्दर निरूपण किया है। इसीप्रकार मुनि रामसिंह ने पाहुड़-दोहा में इसी कोटि के काव्य की रबना की है। दोनों कवियों ने आत्मा-परमात्मा, सम्यक्त्व-मिथ्यात्व तथा समरसता आदि का मार्मिक विवेचन किया है। कुछ विद्वान् इस काव्य को रहस्यवाद की संज्ञा से अभिहित करते हैं। परवर्ती शोधों के अनुसार इन काव्यों के आध्यात्मिक पक्ष पर आचार्य कुन्दकुन्द के प्रवचनसार एवं समयसार का पूर्ण प्रभाव परिलक्षित होता है। महाकवि सिद्ध को यह परम्परा व्यवस्थित रूप में उपलब्ध हुई है। (3) रोमाण्टिक काव्य रोमाण्टिक काव्यों में धर्म एवं इतिहास का अद्भुत समन्वय है। इन काव्यों में धार्मिक पुरुषों या कामदेव के अवतारों के जीवन-चरित्रों के वर्णन हैं एवं कुछ व्रतों एवं मन्त्रों का माहात्म्य बतलाने के लिए अनेक आख्यान लिखे गये हैं। इस कोटि के काव्यों में णायकुमारचरिउ. भविष्यदत्त कहा. सुदंसणचरिउ एवं करकण्डुचरिउ (कनकामर, 11वीं सदी) प्रभृति हैं। इस प्रकार को विधा के काष्यों की विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं(1) अपभ्रंश के रोमाण्टिक काव्य लोक-कथाओं पर आधारित है। (2) उक्त्त काव्यों की एक प्रमुख विशेषता है, पात्रों के मनोवैज्ञानिक चरित्र-चित्रण की। (3) कथावस्तु में रोमांच लाने के लिए समुद्र-यात्रा, जहाज का उलटना, उजाड़ दम, युद्ध आदि के अतिरंजित वर्णन इस प्रकार के काव्यों में प्रमुख हैं। (4) सुत काव्यों में कलह की उड़ान क प्रचुर अनेक पाया जाता है। जब समुद्रतल से लेकर स्वर्ग लोक तक ___कल्पनाओं की कुलाचे मारता हुआ दौड लगाता रहता है। (5) रोमाण्टिक-काव्य एक प्रकार से प्रेमाख्यानक काच्य हैं। इसमें युद्ध और प्रेम को विशेष महत्त्व दिया गया है। हिन्दी-साहित्य का प्रेमाख्यान-काव्य अपभ्रंशः साहित्य की इस विधा का विशेष रूप से आभारी है। (6) पौराणिक काव्यों के समान ही इनमें प्रासंगिक अवान्तर- कथाओं एवं भवान्तर वर्णनों का बाहुल्य है। (7) उक्त काव्यों में कथानक-रूढ़ियों का प्रयोग अत्यधिक मात्रा में हुआ है, जिनमें से निम्न रूढ़ियाँ अत्यन्त प्रसिद्ध हैं(क) प्रथम दर्शन, गुगुण-श्रवण या चित्र-दर्शन द्वारा प्रेम का प्रादुर्भाव । यथा—भविसयत्तकहा, सुदंसणचरिउ आदि। (ख) उजाड़ नगर का मिलना. वहाँ किसी कुमारी का दर्शन एवं विवाह तथा अटूट सम्पत्ति एवं वैभव की प्राप्ति 1 भविसयत्तकहा इसका अच्छ' उदाहरण है। (ग) मुनि श्राप। यथा - भविसयत्तकहा, करकण्डुचरिउ । (घ) दोहद-कामना। यथा – करकंडुचरिउ।। (ङ) पूर्वजन्म की स्मृति के आधार पर शत्रुता। यथा – णायकुमारचरिउ, जसहरचरिउ, करकंडुचरिउ आदि। (च) चरित्रहीना पत्नी। यथा – जसहरचरिउ, करकंडुचरिउ. सुदंसमचरिउ, भविसयतकहा आदि । (छ) रूप-परिवर्तन । यथा – करकंडुचरिउ, भक्सियत्तकहा आदि। उक्त कथानक रूढ़िय. महाकवि सिद्ध को परम्परा से ही प्राप्त हुई, जिन का उपयोग उन्होंने अपने प्रबन्ध काव्य में प्रचुरता के साथ किया है।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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