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महाकह सिंह घिराउ पज्जुष्णचरित
[5.10.5
कोसल दिसएं अउज्झहिं पुरवरि जिण-कल्लाण दिप सुरवरि । तहिं णरणाहु-रणंगणे दुज्जा णिज्जियारि णामेण अरिंजउ। तहो पिययम पियवयण मणोहरि पियवयणाहिहाण सुपयोहरि। रेहइ पउलोमिय इव सक्कहो रविहि रण्णि रोहिणिव ससंकहो। अवरु वि तहिं धण-कणय समिद्धउ सेठि समुदत्तु सुपसिद्ध।
तही पणइणि सई पई -वय-यारिनी पी- हर गामे धारिणी। घत्ता- ते बिण्णिवि अमर-करि-कर-सुकर बहुविह-लक्खण-धारिणि यहे।
उवहिदत्त पियहि तहि वरतियहे हुवे कमेण पुत्त धारिणियहे।। 77 ।।
ते बिण्णिवि लक्खण-गुण-भरियाणं इंद-पडिंद वि अवयरिया। मण्णिभई-पुण्णभद्दाहिहाण
ते बिण्णिवि सयल-कला-णिहाण। दोहिमि णाणाविह सत्थ-गुणिय बहुलक्खण-छंद-णिहट 'मुणिय। परिणाविय ताइपें बेवि जाम तहिं अवसरे तहिं पुर पत्त ताम।
णंदणवणे धणे ताली-तमाले हिंताल-ताल-मालूर- माले। ___ कोशल देश में जिन-कल्याणकों में सुरवर (इन्द्र) को आनन्दित करने वाली अयोध्या नामकी एक श्रेष्ठ पुरी है। वहाँ रणांगण में दुर्जय शत्रुओं को जीतने वाला अरिंजय नामका राजा (राज्य करता) है। उसकी प्रियवदना नामकी सुन्दर पयोधर वाली प्रियतमा थी, जो अपनी प्रियवाणी से सभी के मन को हर लेती थी। वह रानी शक्त की पौलोमी (इन्द्राणी) अथवा रवि की रानी अथवा चन्द्रमा की रोहिणी के समान सुशोभित थी, और भी उसी नगर में धन-कनक से समृद्ध एक सुप्रसिद्ध समुद्रदत्त नामका सेठ (रहता) था। उसकी पतिव्रत धारिणी पीन पयोधरा धारिणी नामकी प्रणयिनी थी। धत्ता- वे दोनों ही हाथी की सैंड के समान भुजाओं वाले सौधर्मदेव (विप्र-पुत्र के जीव) उदधिदत्त (समुद्रदत्त)
की उत्तम गुणों वाली प्रियतमा धारिणी की कोख से अनेक लक्षणधारी पुत्रों के रूप में क्रमश: उत्पन्न हुए।। 77।।
(11) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) अयोध्यापुरी में मुनीश्वर महेन्द्रसूरि का आगमन वे दोनों ही पुत्र सुन्दर लक्षणों और गुणों से भरे-पूरे ऐसे प्रतीत होते थे मानों इन्द्र तथा प्रतीन्द्र ही अवतरे हों। उनके नाम क्रमश: मणिभद्र और पूर्णभद्र थे। वे दोनों ही सभी कलाओं के निधान थे। दोनों ने ही नाना प्रकार के शास्त्रों को गुना (अर्थात् अभ्यास किया)। अनेक प्रकार के लक्षण (व्याकरण), छन्द एवं निघंटु का मनन किया। (जब वे पढ़ चुके तब) पिता ने उन दोनों का विवाह कर दिया। तब उसी समय उस नगर में ताली, तमाल, हिंताल, ताल, मालूर इत्यादि वृक्षों और लवलि, लवंग एवं प्रचुर प्रियंगु वृक्षों से सुशोभित नन्दन वन
(109 (2) गतिशा व्रतधारका।
(10) 2. 4. 'हि। (1) 1. अ. सु। 2. अ. सा।