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________________ 5.6.3] 10 15 अग्गइ-अच्छइ काई नियच्छ तो तहिं असिवर कड्ढिय जामहिं ता(?) तर्हि कुद्धउ जे उवसंत हँ मारहुँ आइय एखंडेवि-वले पर जणु जाणइँ णयरोसारिम ( महा सिंह विश्व पज्जुण्णचरिउ खम दम दंतहँ । बिण्णि वि भाइय मि भुवावलि । किर वक्खाणइँ | रिक्षिणा मारिय | घत्ता — दुइ दोवासकिय (4) भुणि-हणण किय-करवाल भमाडेवि जामहिं । कुहिं स दुट्ठ मण ते बेवि जण कीलिय जक्खेसइँ तामहिं ।। 72 ।। (6) भव्व- कुमुअ 'पडिवोहण चंदे कय किं गहणु परीसह - धीरहो जइ पंचत्तु पत्तु हउँ आयहँ को विण पेच्छइ । मारिवि गच्छ्छु । सर भर | गुज्झउ तामहिं । भइँ विरुद्ध' । (5) 1. अ 'म' 2. अ. टं 3-4 अ प्रति में नहीं है। (6) 1 अ. वण । मर्गे सल्लेहग-दुवि मुषि महु णिवित्ति आहार - सरीरहो । सोमसम्म दिव- सुव असि-घायहँ । [81 जब उन दोनों ने स्व-पर को, भयंकर तलवार को काढा (निकाला) तभी वहाँ गुह्यक (गुप्त यक्ष ) देव उन पर क्रुद्ध हुआ और उनके विरुद्ध ( अपने मन में इस प्रकार ) बोलने लगा - "ये मुनिराज उपशान्त हैं, शम-दम वाले हैं। इनको मारने के लिए ये दोनों भाई आये हैं । यदि मैं इनको अपने बल से खण्डित कर भूमि पर पटक दूँ। तो दूसरे जन यहीं जानेंगे और निश्चय से कहेंगे कि नगर से निकाल कर इन मुनिवर ने ही इन दोनों को मार दिया है।" पत्ता - और इधर वे दोनों द्विज-पुत्र मुनि के दोनों पार्श्व में खड़े होकर मुनि को मारने के लिये जब तलवार घुमाने लगे और दुष्टमन होकर जब उनकी हत्या करने के लिए तत्पर हुए कि उसी समय यक्षेश ने उन दोनों जनों को कीलित कर दिया ।। 72 ।। (6) (प्रद्युम्न के पूर्व जन्म - कथन के प्रसंग में) कीलित विप्र-पुत्रों का वर्णन भव्य कुमुदों को प्रतिबोधित करने के लिए चन्द्रमा के समान तथा परीषह सहने में धीर उन मुनीन्द्र ने अपने मन में दोनों प्रकार की सल्लेखना को धारण किया कि "मेरा आहार एवं शरीर का त्याग है। यदि सोमशर्मा के इन द्विजपुत्रों के असिघात से आगे पंचत्व ( मरण) को प्राप्त होऊँ, अथवा मृत्यु को प्राप्त नहीं होऊँ तो सूर्य ($) (2) नयो: द्वय । 13 ) नगराभिरसाि (4) द्वौ पार्श्वथितौ
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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