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5.4.1)
मडाका सिंह विरउ पज्जुण्णचरित
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मुणिणा-विहिणा तहो दिण्ण वयं __णवयार-जुयं पयउिय समयं । अवरेहिमि) तेण सम अमलं णविऊण मुणीसर 'पय-जुअतं ।। पडिबज्जिया) साक्य चार वर्ष4) । सयलंपि जणं णिय गेहु गयं । सिहिभूइ) वि मरभूइ वि जुवतं मणे चिंतइ पि विणाण-बलं जिणऊण णिहिप्पइ जेण अल) परियाणिय) सच्च-वियार-कलं |(8) सवणं चइ-मंजण-पूय-कम) अंबरं णहु दीसइ जेण समं ।। इय चितेवि ते वि' पलंब-भुवा गय विण्णिवि सोम-दियस्स सुवा ।
पयति स विभिय लाय सुणि णहु वायण ते जिणियंति मुणि। घत्ता- समय-कमल-भसलु णाणइँ कुसलु सो सवणु एक्कु किम लिप्यइ ।
वेय-सत्थ-वलेण तक्कहो-छलेण भणु ताय कयावि ण धिप्पइ ।। 70 । ।
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एत्यंतरे सच्चई परमइँ दुलंघे
मुणि मिलिउ जाम जाइवि सुसंघे।
(प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) अग्निभूति वायुभूति द्वादश-व्रत ग्रहणकर अपने पिता सोमशर्मा
को कहते हैं कि श्रमण मुनि को विवाद में जीतना कठिन है मुनिराज ने विधिपूर्वक उसे व्रत दिये। णमोकार मन्त्र के साय आगमिक सिद्धान्तों को प्रकट किया। उन मुनीश्वरों के पदयुगल को नमस्कार कर उस विप्र पुत्र ने अन्य विनों के साथ निर्दोष श्रावक के 12 व्रत स्वीकार किथे और सभी जन अपने घर गये । ___शिखिभूति-मरुभूति युगल ने उन मुनि के ज्ञान बल का अपने मन में (इस प्रकार) चिन्तवन किया--"जिस ज्ञान-बल से उन्होंने सत्य-विचार की कला को जानकर तथा अत्यर्थ को जीतकर उसका सर्वस्व त्याग कर दिया। ऐसे उन त्यक्त स्नान एवं पूज्य चरण श्रमण मुनिराज के समान अन्य कोई दिखायी नहीं देता।' ऐसा विचार कर दीर्घबाहु वे दोनों पुत्र अपने घर लौटे और विस्मय पूर्वक अपने पिता से बोले- "हे तात् सुनो, विवाद से वे मुनिराज नहीं जीते जा सकते हैं। छत्ता- शास्त्र रूपी कमल का भ्रमर तथा ज्ञान-कुशल वह श्रमण (सात्यकि मुनिराज) अकेला भी कैसे पराजित
किया जाये? वेद-शास्त्र के बल से अथवा तर्क के छल से कहो तो भी हे तात् उसे कभी भी नहीं जीता जा सकता।" ।। 70।।
(4) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) दोनों विप्र-पुत्र मुनिसंघ की हत्या के लिए प्रस्थान करते हैं इसी बीच परमतियों के लिए दुर्लघ्य (अजेय) वे सात्यकि मुनि जाकर मुनि संघ से मिले तथा आचार्य नन्दिवर्धन
(3) 1.9 अहि। 2. अ सार। 3. 3मान। .. 'लन .
5. अति में 'वि' नहीं है।
(3) (1) अगरैण्ड । [2) विप्रेग सह। 13) अंगीकृतं । (4) मुनिगा (अंगीकृतं ।।
(5 निति। 16) अत्पर्य । (7) जनं। विचार (4) पदकमन्स।