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________________ 4.17.5] महाका सिंह विरउउ फन्जुण्णचरिउ [75 विज्जु दंड विष्फुरंतु वासरत्त) तुरंतु। पत्तउ णिएवि तेण तंपि) मुक्क उच्छुवेण जोत्त-गाइए समाणु छंडिउ करे वि ताणु। जास मंदिरं पि 'एत्तु वुट्ठिदेउ सत रतु। शक्क पंशियाण मग आव" - उह गणियँ लग्ग। ओअरा) अणेय भाग मुच्छिया मुआ विहंग। लम्मे तेरि-सम्मे काले तम्म-छित्तए सियाले। दो सियालु ताहँ माय सा फिरंति संति आय। घत्ता- सत्तमए दिवहो रवि अच्छवणे छुडु जलहरु उवसंतउ । तापवर छेत्ते णाडय-सिरि सुहलु वि सियालहिं पत्तउ।। 66 । । (17) वत्थु-छंद- सा सि'मालिय-छुहेण आसण्ण-साएण रज्जू असइ ताम तेत्थु बालहिं सियालहिं । दोहिं पि तेहिमि असिउ तिव्व-तिब्ब णिरु छुह-करातहिं।। उवरे लग्गु णाडय' रवरउ चम्मु सु ते विवण्ण। दोवि सियालवि अग्गिलहिं पुणु उवरइ अइवण्ण।। छ।। बिजली चमकने लगी। तत्काल वर्षा होने लगी। उसे देखकर आनन्दित होकर उसने हल को छोड़ दिया। वह प्रवर नाड़ी सहित जोत भी वहीं छोड़ कर अपनी रक्षा हेतु घर आ पहुँचा । सात रात तक (लगातार) वृष्टि होती रही। पथिक जनों के मार्ग अवरुद्ध हो गये। आप (जल) ऊह (ओघ-प्रवाह) आकाश में लग गया। अनेक भवन भग्न हो गये। पक्षी मूर्छित हो-हो कर मरने लगे। उस क्षेत्र में शृगाल रहते थे। तभी उस समय उनमें से दो शृगाल और उनकी माता फिरते हुए वहाँ आये।" पत्ता- सातवें दिन सूर्यास्त काल में जलधर (मेघ) उपशान्त हुए। तभी उस प्रवर के क्षेत्र में उन दोनों शृगालों ने नाडा रस्सी (चर्मरस्सी) वाला वह हल पा लिया ।। 66।। (171 (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म कथन प्रसंग में-) प्रवर विप्र ने शृगाल-बच्चों के शवों को अपने दरवाजे पर लटका दिया वस्तु-छन्द-शृगालिनी तथा उसके दोनों बच्चों द्वारा तीव्र भूख के कारण अच्छे स्वाद वाली वह रस्सी खा डाली गयी। नाड-रस्सी का कर्कश चर्म उनके उदर में जा लगा (अर्थात् गड़ने लगा) उससे वे मर गये और दोनों ही वे सुन्दर (शृगाली सुत) अग्निला के उदर में पुन: अक्तरे || छ।। (16) 4. ब. । 5. ब. भा। (16) (3) वर्षाकाले । (4) हलं । (5) हर्षितचित्तेण । 46) रक्षा। (7) जलाधा जल प्रवाह. | (8) गृहउवरे। (17) (1) भनित.। (2) नाड्य धर्म । (17) 1. अमि ।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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