________________
महाका सिंह विसउ पज्जण्णचरिज
14.15.14
घत्ता .. ता मुणिणा वि पउत्तु एउ ण मइँ किर पुछिय । अण्ण भवंतरे वेवि भणु तुम्हई कहिं अछिय ।। 65।।
(16) वत्थु-छंद ... अग्गिभूइ वि चवइ भो सवण-जइ मुणहिं
ता तुझुमि भणु अण्ण जम्मे को काइँ हुँतउ । अण कहिए ण छुटिट्यइ तुम जाहिं जा कहिमि जंत 3। मुणि पभण. दूरंतरिउ ता अच्छउ वि अभव्यु ।।
जममंतरु तुम्हहँ तणउँ पगडमि पच्चय पुन्बु ।। छ।। ताम तखणे णिरुत्त
अग्गिभूहणा पउत्तु । जो' स-पच्चयं कहेइ
को ण तं जई” महेइ। तो जइ भणेइ कामि
आसि इत्थु सालिगामि। सुत्तकंतु सुद्ध-सामु
विष्य कोवि पवरु णामु। णेय लेइ दिण्णु-दाणु)
वभणो वि जो किसाणु एक्क वासरे जुएवि
छेत्ते सिरिहलं लएवि। वाहणत्ये जाइ जाम
वोमि-मेहु-छुट्टु ताम। गज्जए सु घडहडंतु
गिंभ डामरं जगंतु।
घत्ता- तब मुनिराज ने कहा—"यह मैंने नहीं पूछा है। अन्य भवान्तर में तुम दोनों कहाँ थे, सो कहो।" ।। 65 ।।
(16) (प्रद्युम्न के पूर्वभव के अन्तर्गत) अग्निभूति वायुभूति के पूर्व-जन्म शालिग्राम के प्रवर द्विज का वर्णन वस्तु-छन्द-मुनिराज का कथन सुनकर अग्निभूति ने भी कहा..."हे श्रमण यदि जानते हो तो तुम ही कहो कि
अन्य जन्म में कौन कहाँ था? जहाँ कहीं भी जाते हुए (अभी) मत जाओ। अब बिना कहे छूटोगे नहीं।" तब मुनिराज ने दूर से ही कहा--"भव्य, अच्छा रुको। मैं तुम्हारे जन्मान्तरों को प्रत्यय
पूर्वक प्रकट करता हूँ ।। छ।।। तब अग्निभूति ने विनम्रतापूर्वक तत्काल कहा-"जो यतिवर सप्रत्यय कहेगा—उन्हें कौन द्विज नहीं पूजेगा?" तब यति ने कहा—"पहले इसी शालिग्राम में कण्ठ में सूत्र (जनेऊधारी शुद्ध सामवेदी प्रवर नामका कोई विप्र रहता था। वह दिया हुआ भी किसी का दान नहीं लेता था। वह ब्राह्मण होकर भी किसान था।
एक दिन वह प्रवर सिर पर हल लेकर खेत में आया। जोतने के लिए जब वह जा रहा था कि तभी आकाश में मेघ छूटे (बादल चढ़ आये)। वे मेघ हडबडाते हुए गरजने लगे और गर्मी को भय उत्पन्न करने लगे। खूब
(16) I. 4. सो। 2-3 अ.
भुईत ।
(16) (I) सुनीश्वरं । (2) अजाची।