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________________ महाकद सिंह विरइउ पज्जुषणचरित [4.14.4 मेहकूडे-पुरवरे णियउ सव्व सुलक्खण पुण्णु । गय कालसंवरही घरे तहिं वड्ढइ पञ्जुण्णु।। छ।। पुणु भणइ पोमु-चक्कवइ देव फणि-गण-सुर-णर कय पाय सेव । जं वालहो सुरहो विरोहु असि तं कारणु महो सामिय पयासि । ता णाणाविह अच्चरिउ भरिउ निणु वित्थारइ पज्जुण्णचरिउ। ठिउ समवसरणे तइलोउ सुणइँ . णिव करयलत्थु मुणि सिरु वि धुण । मगहा-मंडले जण-धण-पगामु) जाणियइ पसिद्धउ सालिगामु। 'उच्छुवण सालि-सरि-सर रवण्णु पप्फुल्लिय-फलियाराम छण्णु। भोयालउ जइवि ण तो वि सप्पु कर-रहिउ"वि तहव ण सो विडप्पु । वंभणहं-कुलागउ आगहार दिक्वं गिहो त्ति सौत्तियहे सारु । तहिं सोमसम्मु णामेण भट्टु अग्गिलपिय जिय घण-थण-भरट्टु । तहो अग्गिभूइ - मरुभूइ तणय दिय-वेय सत्व-विण्णाण गणय । पत्ता- ता चउसंघेण वि सहिउ तिहिं णाणेहि संजुत्तउ। __तहो गामहो आसण्णु मुणि-पुंगमु संपत्तउ।। 64 ।। तथा मेधकूटपुर ले गया । इस प्रकार सभी सुलक्षणों से परिपूर्ण वह बालक (प्रद्युम्न) राजा कालसंवर के घर में बढ़ रहा है।"।। छ।। पुनः पद्मचक्रवर्ती ने पूछा--"फणिगणों, सुरों एवं मनुष्यों द्वारा सेवित चरण हे देव, बालक एवं देव का जो विरोध हुआ था, हे स्वामिन्, उसका कारण भी मुझे प्रकाशित कीजिए।" तब जिनेन्द्र देव ने नाना प्रकार के आश्चर्यों से भरे हुए प्रद्युम्न चरित्र को विस्तारपूर्वक प्रकट किया। तब समवशरण में स्थित सभी लोगों ने सुना। नृप के करतल पर स्थित मुनि नारद ने भी (अपना) सिर धुन लिया। (जिनेन्द्र कथित प्रद्युम्न कथा निम्न प्रकार ___"मगध-मण्डल में जन-जन से प्रसिद्ध शालिग्राम (नामक) ग्राम है, जहाँ सुन्दर-सुन्दर ऊख के वन, शालि के खेत तथा नदी एवं सरोवर हैं। जो ग्राम फूले-फले बगीचों से व्याप्त हैं। यद्यपि वह ग्राम भोगों का आलय है तो भी वह सर्प नहीं है। क्योंकि सर्प के भोग (फलों) का स्थान होता है)। यद्यपि वह ग्राम कर रहित है (टैक्सहीन है) तथापि वह विडप्प (राहु) नहीं है। ब्राह्मणों का कुलागत अग्निहोत्र प्रधान है। श्रोत्रिय ब्राह्मणों का सारभूत दीक्षागृह है। वहाँ सोमशर्मा नामका एक भट्ट रहता था। उसकी घन-स्तनों के भार वाती अग्निला नामकी प्रियतमा थी। उसके दो पुत्र थे— अग्निभूति और वायुभूति । वे दोनों द्विज वेद, शास्त्र एवं ज्योतिष के विज्ञानी थे।" पत्ता- उसी समय उस ग्राम के निकट चतुर्विध संघ सहित, तीन ज्ञानधारी मुनि-पुंगव पधारे ।" ।। 64।। (14) विस्थातः। (2) राहुःकरह अरहितः ।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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