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4.14.3]
महाफारसं विउ पातुमचरित
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छुडु जायइँ दिणे पंचमइ गए छटिहिं पुणु अद्धरयणि समए। सो असुरु धोरु कत्थवि चलिउ णहे जंतहो बोमजाणु खलिउ। चिर रिउ भणेवि मणे जाणिउँ तेणे वालु हरे विणु आणियउँ।। तक्खयगिरि-तले सहूल घणे तहिं सिल चप्पिवि खइराडवणे। गउ कत्थई मुअउ भणेवि असुरु ता मेहकूडु णामेण पुरु। तहिं राउ कालसंवरु वसइ परचक्कु असेसु वि जसु तसइ। सो चडिवि विमाणेहिं कहिँमि तुरिउ पिय कंचणमाला परियरिउ। विज्जाहरवइ संचलउि जहिं ___ तासु वि विमाणु पुणु खलिउ तहिं । पत्ता- खयराडविहे पएसि चलइ विमाणु ण जामहि । पेछ। सिल-वेवंति2) विज्जाहरवइ तामहि ।। 63 ।।
(14) वत्थु-छंद- सा उच्चाइय तेण राएण
तं पेच्छिवि वालु तहिं पुणु ढोइउ कणयमालहे। तहिं णस्थि णंदणु भणिवि तार-तरल-लोयण विसालहे।
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जब उस कुमार के जन्म के पांच दिन बीत गए तब छठे दिन अर्धरात्रि के समय वह घोर असुर कहीं चलकर आकाश-मार्ग में जा रहा था तभी उसका जाता हुआ वह व्योम यान अटक गया। यह चिरकाल का (कोई) रिपु है, यह कह कर उसने मन में उसे पहचान लिया। वही दानव उस बालक को हरकर ले आया है। जहाँ बहुत शार्दूल रहते हैं, ऐसे तक्षकगिरि के तल भाग के खदिराटवी-वन में एक शिला के नीचे उसे चाँप दिया और बालक मर गया है, 'ऐसा विचार कर वह दानव कहीं चला गया। तत्पश्चात् मेघकूटपुर नामके पुर में कालसंवर नामक राजा रहता है, जिससे कि समस्त शत्रुगण डरते रहते हैं, वही (कालसंवर) राजा अपनी प्रिया कंचनमाला के साथ विमान में चढ़कर शीघ्रतापूर्वक कहीं के लिए निकला। वह विद्याधर पति तब चला जा रहा था तभी वहाँ जा पहुँचा (जहाँ वह प्रद्युम्न शिशु चपा पड़ा था राजा का वह विमान वहीं अटक गया)।
वहाँ खदिराटवी के प्रदेश में जब वह विमान नहीं चला, तब विद्याधर पति ने शिला को काँपती हुई देखा ।। 63 ।।
प्रद्युम्न का पूर्व-जन्म (1) मगध स्थित शालिग्राम निवासी सोमशर्म भट्ट का परिचय वस्तु-छन्द- "राजा कालसंवर ने वह शिला ऊँची की (उठाई) और उस शिशु को देखकर उसे (रानी को) पुत्र
उत्पन्न नहीं हुआ", यह कहकर वह उसको विशाल चंचल नेत्र वाली कनकमाला के पास उठा लाया
(13) (1) खदिराटवी। (2) कपति ।